पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त” भारत का राष्ट्रीय पर्व है। यह वह दिन है जब भारत को अंग्रेजों की 200 साल की गुलामी से आजादी मिली थी। 15 अगस्त, 1947 को भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से भारतीय झंडा फहराया और देश को आजाद घोषित किया।

पंद्रह अगस्त एक ऐतिहासिक दिन है। यह दिन भारतीयों के लिए गर्व और खुशी का दिन है। इस दिन, देश भर में उत्सव मनाया जाता है। लोग राष्ट्रीय ध्वज फहराते हैं, देशभक्ति के गीत गाते हैं और एक-दूसरे को बधाई देते हैं।

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi

पंद्रह अगस्त कवि परिचय :

गिरिजाकुमार माथुर जी का जन्म 22 अगस्त 1919 को अशोक नगर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। आपकी आरंभिक शिक्षा झाँसी में हुई थी। आपने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. ए. (अंग्रेजी) एवं एल. एल. बी. की शिक्षा प्राप्त की। कुछ समय तक आपने वकालत की तत्पश्चात दिल्ली में आकाशवाणी में काम किया। कुछ समय तक दूरदर्शन में भी काम किया और वहीं से सेवा निवृत (retired) हुए। माथुर जी की मृत्यु 10 जनवरी 1994 में हुई।

पंद्रह अगस्त Summary in Hindi 1

स्वतंत्रता प्राप्ति के दिनों में हिंदी साहित्यकारों में जो प्रमुख कवि थे, उनमें गिरिजाकुमार माथुर जी का नाम अग्रणी (leading) है।

पंद्रह अगस्त प्रमुख रचनाएँ :

‘मंजीर’, ‘नाश और निर्माण’, ‘धूप के धान’, ‘शिलापंख चमकीले’, ‘जो बँध नहीं सका’, ‘साक्षी रहे वर्तमान’, ‘भीतरी नदी की यात्रा’, ‘मैं वक्त के हूँ सामने’ (काव्य संग्रह), ‘जन्म कैद’ (नाटक) आदि।

पंद्रह अगस्त काव्य विधा :

यह ‘गीत’ विधा है। इसमें एक मुखड़ा (first line) होता है और दो या तीन अंतरे (stanza) होते हैं। इसमें परंपरागत भावबोध तथा शिल्प प्रस्तुत किया जाता है। कवि इस प्रकार की अभिव्यक्ति में प्रतीक, बिंब तथा उपमान का प्रयोग करता है।

पंद्रह अगस्त विषय प्रवेश :

प्रस्तुत गीत में कवि ने स्वतंत्रता के हर्ष और उल्लास को उत्साह पूर्वक अभिव्यक्त (expressed) किया है। कवि देशवासियों एवं सैनिकों को अत्यंत जागरूक रहने का आवाहन कर रहा है।

पंद्रह अगस्त सारांश :

(कविता का भावार्थ) : प्रस्तुत कविता आज़ादी के बाद देश के प्रत्येक नागरिक को संबोधित करती है। कवि देशवासियों को पहरेदार के समान सावधान रहने के लिए कहता है। कवि का कहना है कि हे देशवासियो, यह हमारी विजय की पहली रात है। आज से देश की सभी तरह की सुरक्षा का उत्तरदायित्व हमारा है। हमें उस निश्चल दीपक की भाँति (जो विपरीत समय में भी अपनी रोशनी से अंधकार को ललकारता रहता है।) अपने देश पर आने वाली सभी समस्याओं को दूर भगा देना है।

कविता में प्रथम स्वर्ग का तात्पर्य – पहला लक्ष्य पहली प्राप्ति है, जिसे हमने सामूहिक प्रयास से प्राप्त किया है। कवि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शेष कार्यों की ओर संकेत करते हैं। हमारे सामने अनेक लक्ष्य शेष हैं। देशवासियों ने शारीरिक, मानसिक और आर्थिक पीड़ा को बहुत लंबे समय तक सहन किया है।

देश अपने अपमान को अभी भुला नहीं पाया है। इसलिए आज़ादी के बाद हमारी जिम्मेदारी और अधिक बढ़ गई है। हमें समुद्र की भाँति मन में गहराई और विशालता रखनी होगी। हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता है।

बड़े संघर्ष के बाद मिली आज़ादी के बाद भी अभी बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ अपना ताल ठोक (challenging) रही हैं। हमारे देश पर अनेक देश की ओर से खतरे मँडरा रहे हैं। ब्रिटिश सरकार ने हमें कमजोर करने के लिए कई प्रकार के जाल बिछाए हैं। हमें जाति, धर्म और प्रांत के नाम पर अलग-अलग बाँटने का प्रयास किया है। यह हमारी प्रगति के लिए रुकावट है।

आज ब्रिटिश सरकार का सिंहासन ध्वस्त हो गया है। लोगों में आक्रोश है। अगर हम सावधान न रहे तो हम आपस में ही लड़कर एक दूसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं। इसलिए इस-हर्ष-विषाद (griet) की घड़ी में हमें अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है। जिस प्रकार चाँद की रोशनी अँधेरे में भी पथिक (passenger) को रास्ता दिखाती है ठीक उसी प्रकार हे पहरुए तुम्हें भी सबको रास्ता दिखाना है।

कवि का कहना है कि यह सही है कि हमें स्वतंत्रता मिल गई है। शत्रु सामने से चला गया है पर पीछे से वह कौन सा खेल खेलेगा हमें पता नहीं है। इससे बचने के लिए हमें पहले से भी और अधिक सतर्क रहना होगा। सालों-साल की गुलामी ने हमारे जन समुदाय को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी ओर से अत्यंत दुर्बल बना दिया है।

किंतु हमारा यह एक विश्वास, है कि हमारे जीवन की एक नई शुरुआत हो गई है, यह सोचकर हमारा मनोबल बढ़ जाता है। जैसे समुद्र की लहरें एकजुट होकर समुद्र में ज्वार ला देती हैं हमें भी उन समुद्री लहरों की तरह ही एक-साथ होकर आगे बढ़ते रहना है। हे पहरुए ! उपरोक्त कार्य के लिए तुम्हें अत्यंत सावधान रहना होगा।

Conclusion

पंद्रह अगस्त” भारत के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है। यह दिन हमें स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को याद दिलाता है। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए और एक मजबूत और समृद्ध देश बनाना चाहिए।

लघु कथाएँ Summary in Hindi

लघु कथाएँ Summary in Hindi

“लघु कथाएँ” एक ऐसी साहित्यिक विधा है जिसमें एक छोटी सी कहानी को संक्षेप में बताया जाता है। इनमें आमतौर पर एक या दो मुख्य पात्र होते हैं और कहानी का घटनाक्रम भी बहुत कम होता है। लघु कथाएँ अक्सर किसी एक विचार या विषय पर केंद्रित होती हैं और पाठक को एक संक्षिप्त और प्रभावी तरीके से एक संदेश देती हैं।

लघु कथाओं की उत्पत्ति काफी पुरानी है, लेकिन यह विधा 19 वीं शताब्दी में अधिक लोकप्रिय हुई। उस समय, लघु कथाएँ अक्सर पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में प्रकाशित होती थीं। आजकल, लघु कथाएँ पुस्तकों, पत्रिकाओं, वेबसाइटों और अन्य माध्यमों में प्रकाशित होती हैं।

लघु कथाएँ Summary in Hindi

लघु कथाएँ लेखक परिचय :

श्रीमती संतोष श्रीवास्तव जी का जन्म मध्यप्रदेश के मंडला नामक गाँव में 23 नवंबर 1952 को हुआ। आधुनिक नारी जीवन के विविध आयाम तथा सामाजिक जीवन की विसंगतियाँ (discrepancy) आपके साहित्य द्वारा चित्रित है।

लघु कथाएँ रचनाएँ :

आपकी बहुविध रचनाएँ प्रकाशित हैं : जैसे ‘दबे पाँव प्यार’ ‘टेम्स की सरगम’ ‘ख्वाबों के पैरहन (उपन्यास)’ ‘बहके बसंत तुम’, ‘बहते ग्लेशियर’ (कहानी संग्रह), ‘फागुन का मन’ (ललित निबंध संग्रह) ‘नीली पत्तियों का शायराना हरारत’ (यात्रा संस्मरण)

लघु कथाएँ Summary in Hindi 1

लघु कथाएँ विधा परिचय :

‘लघुकथा’ यह एक गद्य विधा है। कथा तत्त्वों से परिपूर्ण किंतु आकार से लघुता यह उसकी विशेषता है। अत्यंत कम शब्दों में जीवन की पीड़ा, संवेदना, आनंद की गहराई को प्रकट करने की क्षमता लघुकथा में होती है। कोई भी छोटी घटना, प्रसंग, परिस्थिति का आधार लेकर लघुकथा लिखी जाती है। हिंदी साहित्य में डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, संतोष सुपेकर, कमल चोपड़ा आदि को प्रमुख लघुकथाकार के रूप में पहचाना जाता है।

लघु कथाएँ विषय प्रवेश :

(अ) उषा की दीपावली : ‘उषा की दीपावली’ यह एक मर्मस्पर्शी (touching) लघुकथा है। अनाज की बरबादी पर बालमन की संवेदनशील प्रतिक्रिया का सुंदर चित्रण है। एक ओर शादी-ब्याह में थालियों में जरूरत से ज्यादा खाना लेकर उसे जूठा छोड़ने वाले श्रीमान लोग तो दूसरी ओर एक वक्त की रूखी-सूखी रोटी के लिए भी तरसने वाले लोग, इस सामाजिक विरोधाभास (paradox) का चित्रण इस लघुकथा में है।

(आ) ‘मुस्कुराती चोट’ : ‘मुस्कुराती चोट’ इस दूसरी लघुकथा में गरीबी के कारण इच्छा होकर भी पढ़ाई जारी न रख पानेवाला एक छोटा लड़का ‘बबलू’ की उथल-पुथल भरी जिंदगी है। बबलू की पढ़ाई की अदम्य (indomitable) इच्छा, उसकी बाधाएँ, छोटी-छोटी चोटें और अंत में मुस्कुराहट फैलानेवाली सुखद बात पाठकों को लुभाती है। दोनों लघुकथाएँ ‘आशावाद’ को जगाती है।

लघु कथाएँ महावरा :

टस से मस न होना – बिल्कुल प्रभाव न पड़ना, कुछ परिणाम न होना।

लघु कथाएँ सारांश :

(अ) उषा की दीपावली : दीपावली का त्योहार : दीपावली का त्योहार था। नरक-चौदस के दिन लोगों ने कंपाउंड के मुंडेर पर आटे के दीप जलाए थे। सुबह तक वे दीप बुझ गए थे।

बबन की गरीबी : सुबह बबन सफाई के लिए आया था, जो एक गरीब इन्सान था। बुझे दीप उठाकर कूड़े में फेंकने के बजाय वह जेब में रख रहा था। दस साल की उषा ने यह दृश्य देखा। उसे पूछने पर पता चला कि बबन वे आटे के दीपक सेंककर खाना चाहता है।

उषा की संवेदना : उषा की आँखों के सामने वह दृश्य घूमने लगा, जो उसने अनेक बार देखा था। अमीर लोग शादी-ब्याह में ढेर सारा खाना प्लेटों में लेकर बचा-खुचा फेंक देते हैं। उषा की आँखें भर आईं। घर में जाकर उसने दीपावली के मौके पर बनाए हुए पकवान लाकर बबन को दे दिए जिसकी वजह से बबन की आँखों में खुशी के हजारों दीप जगमगा उठे। उषा की दीपावली भी इससे खुशहाल हो गई।

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(आ) मुस्कुराती चोट : ‘बबलू की गरीबी’ – इस लघुकथा का बबलू, गरीब परिवार का लड़का है। माँ चौका-बर्तन करके कुछ पैसे कमाती है। पिता जी बीमार है। माँ का हाथ बँटाने के लिए बबलू घर-घर जाकर रद्दी इकट्ठा करके रद्दी वाले को बेचता है। बबलू के पास किताबें खरीदने के लिए पैसे न होने से उसका स्कूल छूट गया था।

अविश्वास की चोट : एक दिन वह एक घर में रद्दी लेने गया था। उस रददी में किताबें थीं। घर मालकिन की बेटी वे किताबें बबलू को पढ़ने के लिए मुफ्त में देना चाहती थी। परंतु घर मालकिन का बबलू पर भरोसा नहीं था। वह किताबें बेचकर चैन करेगा ऐसा उसे शक था। बबलू ने रद्दी में से किताबें अलग रखवा दीं। रद्दी वाले को किताबों के पैसे खर्च करने की झूठ बात बताकर उससे डाँट सुनकर भी चुप रहा।

पछतावा : बबलू किताबें लेकर वापस आ रहा था। मालकिन ने उसे देखा तो अपने अपशब्दों पर उसे पछतावा हुआ। उसे पता चला कि बबलू पढ़ने की अदम्य इच्छा रखता है। बबलू की आगे की सारी पढ़ाई का खर्चा उठाने का उसने निश्चय किया। सुखद अंत वाली यह कहानी आशावादी है।

Conclusion

“लघु कथाएँ” साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा हैं। वे पाठकों को मनोरंजन, शिक्षा और प्रेरणा प्रदान कर सकते हैं। लघु कथाएँ अक्सर पाठकों को एक नई दृष्टि या विचार प्रदान करती हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव” (लुमिनेसेंट जीव) वे जीव हैं जो अपने शरीर में प्रकाश उत्पन्न कर सकते हैं। प्रकाश उत्पादन एक प्राकृतिक घटना है जो विभिन्न प्रकार के जीवों में पाई जाती है, जिनमें पौधे, कीड़े, मछली और समुद्री अकशेरुकी शामिल हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव लेखक का परिचय

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव लेखक का नाम :
डॉ. परशुराम शुक्ल। (जन्म 6 जून, 1947.)

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव प्रमुख कृतियाँ :
‘जासूस परमचंद के कारनामे’ (बाल धारावाहिक), ‘नन्हा जासूस’ (बाल कहानी संग्रह), ‘सुनहरी परी और राजकुमार’ (बाल उपन्यास), ‘नंदनवन’, ‘आओ बच्चो, गाओ बच्चो’, ‘मंगल ग्रह जाएँगे’ (बाल कविता संग्रह) आदि।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव विशेषता :
बाल साहित्य लेखन और पशु जगत का विश्लेषण करने में सिद्धहस्त। आपकी अनेक कृतियों का अंग्रेजी, उर्दू, पंजाबी, सिंधी आदि भाषाओं में अनुवाद। राष्ट्रीय स्तर के अनेक पुरस्कारों से सम्मानित।

विधा :
लेख। लेख लिखने की परंपरा बहुत पुरानी है। इसमें वस्तुनिष्ठता, ज्ञानपरकता तथा शोधपरकता जैसे तत्त्वों का समावेश होता है। लेख समाज विज्ञान, राजनीति, इतिहास जैसे विषयों का ज्ञानवर्धन करने के साथ-साथ जानकारी का नवीनीकरण भी करते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव विषय प्रवेश :
हम प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों में केवल जुगनू से ही परिचित हैं। लेकिन जुगनू के अतिरिक्त ऐसे अनेक जीव हैं, जो प्रकाश उत्पन्न करते हैं। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के बारे में विस्तार से बताया है। लेखक कहना चाहते हैं कि हमें विज्ञान की दृष्टि से संसार को देखने की आवश्यकता है।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव पाठ का सार

विश्व के समस्त जीवों के लिए प्रकाश का बहुत महत्त्व है। मनुष्य ने अपने लिए प्रकाश की कई तरह की कृत्रिम व्यवस्था की. है। इसी तरह संसार में ऐसे अनेक जीव पाए जाते हैं जिनके शरीर पर प्रकाश उत्पन्न करने वाले अंग होते हैं। मानव द्वारा तैयार किए गए प्रकाश में ऊष्मा होती है, पर जीवों द्वारा उत्पन्न प्रकाश में ऊष्मा नहीं होती। जीवों के प्रकाश उत्पन्न करने की क्रिया को ल्युमिनिसेंस (Luminiscence) कहते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi 1

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों में जुगनू (Firefly) प्रसिद्ध जीव है। यह कीट वर्ग का जीव है और पूरे वर्ष प्रकाश उत्पन्न करता है।

संसार में कवक (छत्रक) (Fungus) की कुछ जातियाँ रात में प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इसी प्रकार मशरूम की कुछ जातियाँ भी रात में प्रकाश उत्पन्न करती हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव थल की अपेक्षा खारे पानी यानी सागरों-महासागरों में अधिक पाए जाते हैं। ये सागर के गहरे पानी में पाए जाते है। इनमें जेलीफिश, स्क्विड, क्रिल तथा विभिन्न जाति के झींगे मुख्य हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव दो प्रकार से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। एक जीवाणुओं द्वारा और दूसरे रासायनिक पदार्थों की पारस्परिक क्रिया द्वारा कुछ जीवों के शरीर पर ऐसे जीवाणु रहते हैं, जो प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये जीव प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं से सहजीवी संबंध बना लेते हैं और आवश्यकता के अनुसार इनके प्रकाश का उपयोग करते हैं।

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जीवाणुओं के प्रकाश का उपयोग करने वाले जीव इस प्रकाश का उपयोग दो तरह से करते हैं – एक शरीर के भाग को भीतर खींच कर और दूसरे प्रकाश उत्पन्न करने वाले भाग को ढककर। इससे वे उस स्थान का प्रकाश समाप्त कर देते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले कुछ जीव रसायनों की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। वे रसायन प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के शरीर में रहते हैं तथा ल्यूसीफेरिन तथा ल्यूसीफेरैस नामक रसायनों की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

अधिकांश जीव जीवाणुओं द्वारा अथवा रासायनिक क्रिया द्वारा प्रकाश उत्पन्न करते हैं। लेकिन कुछ जीव ऐसे होते हैं जिनके शरीर में विशेष प्रकार की ग्रंथि होती है, जिससे एक विशेष प्रकार का द्रव पदार्थ निकलता है। वह द्रव पदार्थ पानी के संपर्क में आते ही प्रकाश उत्पन्न करने लगता है।

समुद्र में पाए जाने वाले प्रकाश उत्पादक जीव पानी के बाहर प्रकाश उत्पन्न नहीं कर सकते हैं।

अध्ययनों से पता चला है कि जमीन और पानी के सभी जीव अपने अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति के लिए अपने-अपने ढंग से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। ये उद्देश्य इस प्रकार होते हैं – साथी की खोज और संकेतों का आदान-प्रदान, शिकार की खोज और शिकार को आकर्षित करना, कामाफ्लास उत्पन्न करना तथा आत्मरक्षा करना।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव Summary in Hindi 3

गहरे समुद्रों में अनेक जीव शिकार की खोज के लिए अपने शरीर से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। एंगलर मछली उनमें से एक है। समुद्र में अनेक जीव, विशेषकर मछलियाँ शिकार करने अथवा सुरक्षा की दृष्टि से कामाफ्लास के लिए प्रकाश उत्पन्न करती हैं। इससे उन्हें शिकार करने और सुरक्षित रहने में सहायता मिलती है। समुद्र के कुछ अन्य जीव भी आत्मरक्षा के लिए अपने प्रकाश अंगों से तरल रसायन छोड़कर चमकीला प्रकाश उत्पन्न करते हैं।

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों के बारे में वैज्ञानिक अध्ययन सन 1600 के आसपास शुरू हुआ था। वैज्ञानिक यह जानना चाहते थे कि कुछ जीव प्रकाश क्यों उत्पन्न करते हैं। सन 1794 तक जीव वैज्ञानिक यह समझते रहे कि समुद्री जीव फासफोरस की सहायता से प्रकाश उत्पन्न करते हैं। किंतु फासफोरस विषैला पदार्थ होता है यह जीवित कोशिका में नहीं रह सकता। इसलिए इस मत को मान्यता नहीं मिल सकी।

सन 1794 में इटली के वैज्ञानिक स्पैलेंजानी, सन 1887 में फ्रांसीसी वैज्ञानिक थिबाइस तथा सन 1894 में प्रोफेसर अलिरक डाहलगैट ने जीवों के प्रकाश उत्पन्न करने के बारे में विभिन्न मत व्यक्त किए। इससे प्रकाश उत्पन्न करने वाले नए-नए जीवों के खोज के कार्य को प्रोत्साहन मिला।

सागर में प्रकाश उत्पन्न करने वाले तरह-तरह के जीव पाए गए हैं, जो अपनी किस्म के निराले हैं।

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धरती पर पाए जाने वाले प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीवों की संख्या बहुत है। इनमें ऑक्टोपस, एंगलर मछलियाँ, कटलफिश, कनखजूरा, कार्डिनल मछली, क्रिल, कोपपाड, क्लाम, जुगनू, जेलीफिश, टोड मछली, धनुर्धारी मछली, नलिका कृमि, पिडाक, वाम्बेडक मछली, ब्रिसलमाउथ, भंगुरतारा, मूंगा, लालटेल मछली, वाइपर मछली, शंबुक, शल्क कृमि, समुद्री कासनी, समुद्री स्लग, समुद्री स्क्विर्ट, स्क्विड तथा व्हेल मछली आदि प्रमुख हैं।

Conclusion

प्रकाश उत्पन्न करने वाले जीव एक अद्भुत प्राकृतिक घटना है। इन जीवों का अध्ययन हमें प्रकाश उत्पादन के बारे में अधिक जानने में मदद करता है।

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi

“ब्लॉग लेखन” एक ऐसा माध्यम है जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने विचारों, अनुभवों और ज्ञान को दूसरों के साथ साझा कर सकता है। ब्लॉग लेखन एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का रूप है, जिसमें लेखक अपनी रुचियों और ज्ञान के आधार पर विषयों का चुनाव कर सकता है।

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi

ब्लॉग लेखक का परिचय

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi 1

ब्लॉग लेखन का नाम :
प्रवीण बर्दापूरकर। (जन्म : 3 सितम्बर, 1955.)

ब्लॉग लेखन प्रमुख कृतियाँ :
‘डायरी’, ‘नोंदी डायरीनंतरच्या’, ‘दिवस असे की’, ‘आई’, ‘ग्रेस नावांच गारूड’ आदि।

ब्लॉग लेखन विशेषता :
प्रवीण बर्दापूरकर राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक क्षेत्रों का गहराई से अध्ययन करने वाले तथा उन्हें समझने वाले निर्भीक पत्रकार के रूप में सुपरिचित हैं। आपने पत्रकारिता के क्षेत्र में ब्लॉग लेखन को बहुत ही लोकप्रिय बनाया है।

प्रवीण जी ने ब्लॉग द्वारा बदलते सामाजिक विषयों को परिभाषित करते हुए जनमानस की विचारधारा को नयी दिशा प्रदान की है। सीधी-सादी, रोचक और संप्रेषणीय मराठी और हिंदी भाषा में लिखे गए ब्लॉग आपके धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण की पुष्टि करते हैं।

ब्लॉग लेखन विषय प्रवेश :
आधुनिक समय में पत्रकारिता के क्षेत्र में ब्लॉग लेखन का प्रचलन लोकप्रिय बनता जा रहा है। प्रस्तुत पाठ में लेखक ने ब्लॉग लिखने के नियम, ब्लॉग का स्वरूप और उसके वैज्ञानिक पक्ष की चर्चा करते हुए उसके महत्त्व को स्पष्ट किया है। ब्लॉग लेखन जहाँ एक ओर सामाजिक जागरण का माध्यम बन चुका है, वहीं पत्रकारिता के जीवित तत्त्व के रूप में भी स्वीकृत हुआ है तथा बड़ा ही लोकप्रिय माध्यम बन चुका है।

ब्लॉग लेखन पाठ का सार

ब्लॉग लेखन से तात्पर्य :
ब्लॉग अपना विचार, अपना मत व्यक्त करने का एक डिजिटल माध्यम है। ब्लॉग के माध्यम से हम जो कुछ कहना चाहते हैं, उसके लिए किसी से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होती। ब्लॉग लेखन में शब्द संख्या का बंधन नहीं होता। हम अपनी बात को जितना विस्तार देना चाहें, दे सकते हैं।

ब्लॉग, वेबसाइट, पोर्टल आदि डिजिटल माध्यम हैं। अखबार, पत्रिका या पुस्तक हाथ में लेकर पढ़ने के स्थान पर उसे कंप्यूटर, टैब या सेलफोन पर पढ़ना डिजिटल माध्यम कहलाता है। इस प्रकार का वाचन करने वाली

ब्लॉग लेखन Summary in Hindi 2

पीढ़ी का निर्माण इंटरनेट के महजाल के कारण हुआ है। इसके कारण लेखक और पत्रकार भी ग्लोबल हो गए हैं। नवीन वाचकों की संख्या मुद्रित माध्यम के वाचकों से बहुत अधिक है। इस वर्ग में युवा वर्ग अधिक संख्या में है। इस माध्यम के द्वारा पूरी दुनिया की कोई भी जानकारी क्षण भर में ही परदे पर उपलब्ध हो जाती है।

ब्लॉग की खोज :
ब्लॉग की खोज के संबंध में निश्चित रूप से कोई डॉक्युमेंटेशन उपलब्ध नहीं है, पर जो जानकारी उपलब्ध है, उसके अनुसार जस्टीन है हॉल ने सन 1994 में सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग किया। जॉन बर्गर ने इसके लिए वेब्लॉग शब्द का प्रयोग किया था। माना जाता है कि 1999 में पीटर मेरहोल्स ब्लॉग शब्द को प्रस्थापित कर उसे व्यवहार में लाए। भारत मे 2002 के बाद ब्लॉग लेखन आरंभ हुआ और देखते-देखते यह माध्यम लोकप्रिय हो गया।

साथ ही इसे अभिव्यक्ति के नए माध्यम के रूप में मान्यता भी प्राप्त हुई।

ब्लॉग लेखन शुरू करने की प्रक्रिया :
यह एक टेक्निकल अर्थात तकनीकी प्रक्रिया है। इसके लिए है डोमेन अर्थात ब्लॉग के शीर्षक को रजिस्टर्ड कराना होता है। इसके बाद उसे किसी सर्वर से जोड़ना पड़ता है। उसमें अपनी विषय सामग्री समाविष्ट करके हम इस माध्यम का प्रयोग कर सकते हैं। इस संदर्भ में विस्तृत जानकारी ‘गूगल’ पर उपलब्ध है। कुछ विशेषज्ञ इस संदर्भ में सशुल्क सेवाएँ देते हैं।

ब्लॉग लेखक के लिए आवश्यक गुण :
ब्लॉग लेखक के पास लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए बहुत-से विषय होने चाहिए। विपुल पठन, चिंतन तथा भाषा का समुचित ज्ञान होना आवश्यक है। भाषा सहज और प्रवाहमयी हो तो पाठक उसे पढ़ना चाहेगा। साथ ही लेखक के पास विषय से संबंधित संदर्भ, घटनाएँ और यादें हों तो ब्लॉग पठनीय होगा। जिस क्षेत्र या जिस विख्यात व्यक्ति के संदर्भ में आप लिख रहे हैं, उस व्यक्ति से आपका संबंध कैसे बना?

किसी विशेष भेंट के दौरान उस व्यक्ति ने आपको कैसे प्रभावित किया? यदि वह व्यक्ति आपके निकटस्थ परिचितों में है तो उसकी सहृदयता, मानवता आदि से संबंधित कौन-सा पहलू आपकी स्मृति में रहा। ऐसे अनेक विषय शब्दांकित किए जा सकते हैं।

ब्लॉग लेखन में विषय में आशय की गहराई आवश्यक है। प्रवाहमयी कथन शैली, सीधी-सादी और सहज भाषा का प्रयोग किया जाए, तो पाठक विषय सामग्री से शीघ्र ही एकरूप हो जाता है। ब्लॉग लेखन में क्लिष्ट शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए। उचित विशेषणों का प्रयोग भाषा को सुंदरता प्रदान करता हैं और पाठक इसकी ओर आकर्षित होता है। भाषा केवल शब्दों का समूह ही नहीं होता, बल्कि प्रत्येक शब्द का एक विशिष्ट अर्थ होता है।

सहज-सरल होने के साथ-साथ भाषा का बाँकपन ब्लॉग लेखन की गरिमा को बढ़ाता है। किसी भी शैली का विकास एक दिन में नहीं हो जाता। सतत लेखन के द्वारा ही यह संभव है। जिस प्रकार एक गायक प्रतिदिन रियाज करके राग और बंदिश में निपुण हो पाता है, उसी प्रकार निरंतर लेखन से लेखक की एक शैली विकसित होती है और पाठक को प्रभावित करती है।

ब्लॉग लेखन में आवश्यक सावधानियाँ :
ब्लॉग लेखन में इस बात का ध्यान रखना पड़ता है कि उसमें मानक भाषा का प्रयोग हो। व्याकरणिक अशुद्धियाँ न हों। ब्लॉग लेखन के लिए प्राप्त स्वतंत्रता का उचित उपयोग करना चाहिए। लेखन की स्वतंत्रता से हमें यह नहीं समझना चाहिए कि हम कुछ भी लिख सकते हैं।

आक्रामकता का अर्थ गाली-गलौज अथवा अश्लील शब्दों का प्रयोग करना नहीं है। पाठक ऐसी भाषा को पसंद नहीं करते। ब्लॉग लेखक को किसी की निंदा करना, किसी पर गलत टिप्पणी करना, समाज में तनाव की स्थिति उत्पन्न करना है आदि बातों से दूर रहना चाहिए। बिना सबूत के किसी पर आरोप लगाना एक गंभीर अपराध है। पाठक ऐसे लेखकों की बात गंभीरता से नहीं पढ़ते। परिणामस्वरूप ब्लॉग की आयु अल्प हो जाती है।

ब्लॉग लेखन करते समय छोटी-छोटी बातों का ध्यान रखा जाए तो पाठक ही हमारे ब्लॉग के प्रचारक बन जाते हैं। एक पाठक दूसरे से और दूसरा तीसरे से सिफारिश करता है और पाठकों की श्रृंखला बढ़ती चली जाती है।

ब्लॉग लेखन का प्रसार :
ब्लॉग लेखक अपने ब्लॉग का प्रचार-प्रसार स्वयं कर सकता है। विज्ञापन, फेसबुक, वॉट्सऐप, एस एम एस आदि द्वारा इसका प्रचार होता है। आकर्षक चित्रों, छायाचित्रों के साथ विषय सामग्री यदि रोचक हो तो पाठक ब्लॉग की प्रतीक्षा करता है और उसका नियमित पाठक बन जाता है।

ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ : ब्लॉग लेखन से आर्थिक लाभ भी होता है। विशेष रूप से हिंदी और अंग्रेजी ब्लॉग लेखन का पाठक वर्ग व्यापक होने के कारण इससे अच्छी आय होती हैं। विद्यार्थी अपने अनुभव तथा विचार ब्लॉग लेखन द्वारा साझे कर सकते हैं।

प्रत्येक विद्यार्थी अपनी जीवन शैली, अपना संघर्ष, अपनी सफलताएँ विभिन्न रूपों में अभिव्यक्त कर सकता है। राजनीतिक विषयों के लिए अच्छा प्रतिसाद मिल सकता है। शिक्षा विषयक ब्लॉग पढ़ने वाला पाठक वर्ग बहुत बड़ा है। यात्रा वर्णन, आत्मकथात्मक तथा विश्व से जुड़े जीवन की प्रेरणा देने वाले विषय भी बड़े चाव से पढ़े जाते हैं।

Conclusion

ब्लॉग लेखन एक लोकप्रिय तरीका है अपने विचारों, अनुभवों और ज्ञान को दूसरों के साथ साझा करने का। ब्लॉग लेखन एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का रूप है, जिसमें लेखक अपनी रुचियों और ज्ञान के आधार पर विषयों का चुनाव कर सकता है। ब्लॉग लेखन के कई लाभ हैं, जैसे कि यह एक व्यक्तिगत अभिव्यक्ति का रूप है, यह दूसरों के साथ विचारों और अनुभवों को साझा करने का एक तरीका है, यह ज्ञान और जानकारी को दूसरों तक पहुंचाने का एक तरीका है, और यह एक ऑनलाइन पहचान बनाने और एक समुदाय बनाने का एक तरीका है।

Maharashtra 12th Class Summary In Hindi

Maharashtra 12th Class Summary In Hindi

महाराष्ट्र 12वीं कक्षा का पाठ्यक्रम एक महत्वपूर्ण मोड़ है, क्योंकि यह छात्रों को उच्च शिक्षा और भविष्य के करियर के लिए तैयार करता है। इस वर्ष के दौरान, छात्रों को विभिन्न विषयों में गहन ज्ञान और कौशल प्राप्त करना होता है, जिनमें हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन शामिल हैं।

Maharashtra 12th Class Summary In Hindi

12वीं कक्षा आपके जीवन का एक महत्वपूर्ण वर्ष है। यह वह समय है जब आप अपने भविष्य के लिए आधार तैयार कर रहे हैं। इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपने अध्ययन पर ध्यान दें और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करें। आपको अपनी क्षमताओं में विश्वास करना चाहिए और सकारात्मक रहना चाहिए।

Anargha Nimisham Summary in Malayalam

Anargha Nimisham Summary in Malayalam

Anargha Nimisham is a Malayalam short story by O.V. Vijayan. It was first published in 1975 in the literary magazine Mathrubhumi. The story is set in a small village in Kerala and tells the story of a young man named Unni who is trying to find his place in the world.

The story begins with Unni sitting on a rock, watching the sunset. He is thinking about his life and how he wants to live it. Unni is a sensitive and thoughtful young man. He is always questioning the world around him and trying to find meaning in his life.

Anargha Nimisham Summary in Malayalam

ജീവിതരേഖ : 1908 – ൽ വൈക്കത്ത് തലയോലപ്പറമ്പിൽ ജനിച്ചു. 1994 – ൽ ഈ ബേപ്പൂർ സുൽത്താൻ ബേപ്പൂരിൽ വച്ച് ഇഹലോക വാസത്തിൽ നിന്നും പടച്ച തമ്പുരാന്റെ ഖൽബിലേക്ക് മടങ്ങി. 1982 – ൽ ഇന്ത്യാ ഗവൺമെന്റ് പത്മശ്രീ നൽകി ആദരിച്ചു. ഏറ്റവും അധികം വായിക്കപ്പെടുന്ന മലയാളം എഴുത്തുകാരൻ.

Anargha Nimisham Summary in Malayalam 1
വൈക്കം മുഹമ്മദ് ബഷീർ

ആമുഖം

‘ബഷീറിയൻ സാഹിത്യം’ എന്ന് പിന്നീട് പ്രസിദ്ധി കൊള്ളുന്ന രീതിയിൽ ഒരു സാഹിത്യസരണി, മലയാള സാഹിത്യത്തിൽ പ്രോദ്ഘാടനം ചെയ്യാൻ ആ തൂലികയക്ക് സാധിച്ചു. ഒരു വ്യക്തി കേന്ദ്രീക തമായ സാഹിത്യമാർഗ്ഗങ്ങൾ മലയാളത്തിലെന്നല്ല, ലോകസാഹിത്യത്തിൽ തന്നെ അപൂർവ്വമായിരിക്കും. പൗരാണിക മലയാളസാഹിത്യം പരിശോധിക്കുമ്പോൾ നമുക്കൊരു എഴുത്തച്ഛനെ ദർശിക്കാൻ സാധിക്കും. തന്റേതായ വ്യക്തിപ്രഭാവംകൊണ്ട്, സാഹിത്യ സിദ്ധി കൊണ്ട് ഒരു മഹാസാഹിത്യത്തെ

നയിക്കാൻ കഴിയുക: അവിടെ യാണ് വൈക്കം മുഹമ്മദ് ബഷീർ’ എന്ന സാഹിത്യനായകൻ നമുക്കു മുന്നിൽ ഉയർന്നു നിൽക്കുന്നത്. ബഷീറിൽ നമുക്കു കണ്ടെത്താൻ കഴിയുന്നത് നമ്മുടെ തന്നെ ചേതോവികാരങ്ങളെയാണ്. ഒരിക്കലും പുറത്തു കാണിക്കാൻ കഴിയാതെ മനസ്സിൽ മറച്ചുവെച്ചത്, ബഷീർ നിസ്സങ്കോചം എടുത്ത് പുറത്തേക്കിട്ടു.

നമുക്കുതന്നെ പറയാൻ കഴിയുന്നത് എന്ന രീതി യിൽ അത്ര നിസ്സാരമായി, ലളിതമായി, ബഷീർ അത് വരച്ചിട്ടപ്പോൾ അത്ഭുതത്തോടെ നാം നോക്കിനിന്നു. നിത്യജീവിതത്തിൽ നാം കണ്ടെത്തുന്ന മുഖങ്ങളെ, സംഭവങ്ങ ളെ, അതിതീവ്രമായി എന്നാൽ അനായാസമായി ബഷീർ കോറിയിട്ടപ്പോൾ അത് മല യാളി സമൂഹത്തിന്റെ ഏറ്റവും വലിയ ഗൃഹാതുരയായി തീർന്നു.

ബഷീറിന്റെ ഹാസ്യവും ചിന്തനീയമാണ്. ആഴത്തിൽ ജീവിതത്തെ നോക്കിക്കാണുകയും, ദാർശനികമായി അപഗ്രഥിക്കുകയുമാണ് ബഷീറിന്റെ ഹാസ്യം. ഒരേ സമയം ചിരിപ്പിക്കുന്നതും, ചിന്തോദ്ദീപകവുമാണത്. ജീവിതത്തിന്റെ, ഇരുണ്ട വശങ്ങളെ ബഷീറിയൻ ഹാസ്യം വെളിച്ചത്തേക്കു കൊണ്ടുവന്നു. പട്ടിണി

ഒരു വലിയ ആഘോഷമായി. ഇല്ലായ്മ അതുവരെ മൂടിവെക്കേണ്ട ഒന്നാ യിരുന്നുവെങ്കിൽ ബഷീറിലത്, പുരപ്പുറത്തുനിന്നും വിളിച്ചുക വേണ്ട അനായാസമായ ഒരു യാഥാർത്ഥ്യമായി. ജീവിതത്തിന്റെ എല്ലാ മേഖലകളേയും ഒരേപോലെ, സമചിത്തതയോടെ കാണാൻ, പക്വതയോടെ സമീപിക്കാൻ ബഷീർ ഹാസ്യം മലയാ ളിയെ പഠിപ്പിച്ചു.

‘അനർഘനിമിഷം’ – ബഷീറിന്റെ സാഹിത്യസപര്യയിൽ വേറിട്ടു നിൽക്കുന്നു. ജീവിതത്തിന്റെ താളം ചിലപ്പോഴൊക്കെ നിലച്ചു പോകാവുന്ന അവസ്ഥകൾ ഉണ്ടാകാറുണ്ട്. എപ്പോഴും വെളിപ്പെടുത്താൻ സാധിക്കാത്ത മഹാരഹസ്യമായ നിമിഷം. അതു തീവ്രമായ വേർപാടിന്റെ അനർഘനിമിഷമാണ്. വേദനയുടെ മഹാതീരത്ത് നാം ഒറ്റപ്പെടുന്ന നിമിഷം.

പതിവായ ശൈലിക ളിൽ നിന്നും, രീതികളിൽ നിന്നും ബഷീർ ‘അനർഘനിമിഷ ത്തിൽ വ്യത്യസ്തനാകുന്നു. ആഖ്യാനശൈലിയിലും, പദയോഗങ്ങളിലും ബഷീറിൽ ഏറ്റവും പ്രിയംകരമായ സൂഫി ചൈതന്യത്തിന്റെ സ്വാധീനം കാണാൻ കഴിയുന്നു. അപാരമായ ശാന്തത ഉള്ളിൽ വഹിച്ചുകൊണ്ടാണ്, ഇതിൽ

ബഷീർ സംസാരിക്കുന്നത്. ഏകാ . ന്തതയുടെ ഏറ്റവും കഠിനമായ തിരിച്ചറിവോടെ ഇനി ഒറ്റയ്ക്കാണന്ന യാഥാർത്ഥ്യം; വേർപാടിന്റെ ഏറ്റവും കന പ്പെട്ട മുഹൂർത്തം. ആ തീഷ് ണ മുഹൂർത്തത്തിലേക്ക് ബഷീർ നയെയും കൊണ്ടുപോവുകയാണ്. വേദനയുടെ തീരത്ത് നാം ഒറ്റപ്പെട്ടുപോകുന്ന കഠിനമായ അവസ്ഥ.

അപാരമായ സ്നേഹത്തിന്റെ കരുത്തുറ്റ ഒഴുക്ക് ‘അനർഘനിമിഷത്തിൽ കാണാം. ലൗകികതയുടെ ക്ഷണപ്രഭകളോടല്ല ഇവിടെ ബഷീർ പ്രണയം പ്രഖ്യാപിക്കുന്നത്. അലൗകികമായ, ആത്മീയ അനുഭൂതിതന്നെയാണ് ബഷീറിന്റെ സന്ദേശത്തിന്റെ കാതൽ.

ജീവനും, മരണവും തമ്മിലുള്ള വലിയൊരു മുഖാമുഖം – ‘അനർഘനിമിഷത്തിന്റെ അടിയൊഴുക്കായി നിലനിൽക്കുന്നുണ്ട്. ആഴത്തിലുള്ള തിരിച്ചറിവിന്റെ, ആത്മസാക്ഷാത്ക്കാരത്തിന്റെ അടയാളം കൂടിയാണ് ‘അനർഘനിമിഷം’.

Conclusion:

Anargha Nimisham is a beautifully written and thought-provoking story about the meaning of life. The story is a reminder that the most important thing in life is to live in the present moment.

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक” एक आत्मकथात्मक कहानी है, जो एक उद्घोषक के जीवन और अनुभवों को दर्शाती है। इस कहानी में, उद्घोषक अपने करियर की शुरुआत से लेकर सफलता तक के सफर को बताता है। वह अपने संघर्षों और चुनौतियों के बारे में भी बताता है।

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

मैं उद्घोषक लेखक का परिचय

मैं उद्घोषक लेखक का नाम :
आनंद प्रकाश सिंह। (जन्म : 21 जुलाई, 1958.)

मैं उद्घोषक प्रमुख कृतियाँ :
पत्र-पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर लेख, समीक्षाएँ, कहानियाँ, कविताएँ आदि प्रकाशित।

मैं उद्घोषक विशेषता :
पंडित भीमसेन जोशी तथा कई अन्य प्रसिद्ध व्यक्तियों द्वारा लेखक के सूत्र-संचालन की प्रशंसा। किंग ऑफ वॉईस, संस्कृति शिरोमणि तथा अखिल आकाशवाणी जैसे पुरस्कारों से सम्मानित।

मैं उद्घोषक विधा :
आत्मकथा। आत्मकथा लेखन हिंदी साहित्य में रोचक और पठनीय लेखन माना जाता है। अपने अनुभवों तथा व्यक्तिगत प्रसंगों को पूरी निष्ठा से बताना आत्मकथा की पहली शर्त है। आत्मकथा उत्तम पुरुष वाचक सर्वनाम ‘मैं’ में लिखी जाती है।

मैं उद्घोषक विषय प्रवेश :
आजकल मंच संचालन अथवा सूत्र संचालन बहुत लोकप्रिय और महत्त्वपूर्ण माना जाता है। लेखक एक सफल मंच संचालक और सूत्र संचालक रहे हैं। प्रस्तुत लेख में उन्होंने बताया है कि सफल उद्घोषक अथवा मंच संचालक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से आवश्यक गुण होने चाहिए। लेखक के अनुसार कार्यक्रम की सफलता मंच संचालक अथवा सूत्र संचालक के आकर्षक एवं उत्तम संचालन तथा उसके अपने विशेष गुणों पर आधारित होती है।

मैं उद्घोषक पाठ का सार

प्रस्तुत पाठ में यह बताया गया है कि एक सफल उद्घोषक बनने के लिए व्यक्ति में कौन-कौन से गुण होने चाहिए और इसमें रोजगार की क्या संभावनाएँ हैं। इस लेख के लेखक स्वयं लंबे अरसे तक एक प्रतिष्ठित उद्घोषक रहे हैं। इस आत्मकथात्मक लेख में उन्होंने अपने अनुभव से अर्जित अनेक गुणों से परिचित कराया है।

मैं उद्घोषक Summary in Hindi

उद्घोषक, मंच संचालक और एंकर अलग-अलग नाम हैं उद्घोषक के। यह श्रोता और वक्ता को जोड़ने वाली कड़ी का काम करता है। किसी भी कार्यक्रम में मंच संचालक की भूमिका बहुत महत्त्वपूर्ण होती है। उद्घोषक ही आयोजकों तथा अतिथियों को मंच पर आमंत्रित करता है तथा पूरे कार्यक्रम का संचालन करता है।

उदघोषक बनने के लिए कठिन अभ्यास की आवश्यकता होती है। आरंभ में मंच पर बोलने में सबको झिझक होती है। पर हिम्मत जुटाकर अभ्यास करते रहने से यह झिझक दूर हो जाती है। अधिकांश मंच संचालकों के साथ ऐसी घटनाएँ अकसर होती हैं। धीरे-धीरे उनमें आत्मविश्वास आ जाता है।

सूत्र संचालन के कई प्रकार होते हैं। इसके मुख्य प्रकार हैं – शासकीय कार्यक्रम का सूत्र संचालन, दूरदर्शन हेतु सूत्र संचालन, रेडियो हेतु सूत्र संचालन, राजनीतिक, सामाजिक तथा सांस्कृतिक
कार्यक्रमों का सूत्र संचालन।

शासकीय एवं राजनीतिक समारोहों के सूत्र संचालन में प्रोटोकॉल १ का ध्यान रखते हुए अधिकारियों के पदों के अनुसार नामों की सूची बनाकर किसका किसके हाथों स्वागत करना है, इसकी योजना बनानी पड़ती है। इसमें आलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।

दूरदर्शन तथा रेडियो कार्यक्रम का सूत्र संचालन करने के लिए इन पर प्रसारित किए जाने वाले कार्यक्रमों की पूरी जानकारी होनी जरूरी है। इनके कार्यक्रमों की संहिता लिखकर तैयार करनी होती है।

सूत्र संचालन करते समय रोचकता, रंजकता तथा विभिन्न प्रसंगों का उल्लेख कार्यक्रम में करने से उसमें जान आ जाती है। कार्यक्रम और श्रोताओं के अनुसार भाषा का प्रयोग जरूरी होता है।

सत्र संचालक को यह ध्यान रखना होता है कि जिस प्रकार का कार्यक्रम हो उसी तरह की उसकी तैयारी की जानी चाहिए और उसी तरह उसकी संहिता लेखन करना चाहिए। संचालक को चाहिए कि वह संचालन के लिए आवश्यक तत्त्वों का अध्ययन करे।

सूत्र संचालक में कुछ गुणों का होना आवश्यक है। उसे मिलनसार, हँसमुख, हाजिरजवाबी तथा विविध विषयों का जानकार होने के साथ भाषा पर उसका अधिकार होना चाहिए। इसके अलावा उसे आयोजकों की ओर से अचानक मिली सूचना के अनुसार संहिता में परिवर्तन कर संचालन करना आना चाहिए।

लेखक कहते हैं कि कार्यक्रम कोई भी हो, मंच संचालक को मंच की गरिमा बनाए रखनी चाहिए। मंच पर आने वाला पहला व्यक्ति मंच संचालक होता है। अतएव उसका परिधान, वेशभूषा, केश सज्जा आदि सहज और गरिमामय होना चाहिए। उसका व्यक्तित्व और आत्मविश्वास उसके शब्दों में उतरना चाहिए।

सतर्कता, सहजता और उत्साह वर्धन उद्घोषक के मुख्य गुण हैं। उद्घोषक को कार्यक्रम का आरंभ रोचक ढंग से करना चाहिए। बीच-बीच में प्रसंग के अनुसार चुटकुले, शेर-ओ-शायरी के अंश का प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए उद्घोषक को निरंतर अध्ययन करते रहना होता है।

उपर्युक्त बातों पर ध्यान देने वाला व्यक्ति अच्छा उद्घोषक बन सकता है। मंच पर उद्घोषक श्रोता एवं दर्शकों के समक्ष होता है, पर रेडियो और कभी-कभी टीवी का सूत्रधार परदे के पीछे होता है। उसकी केवल आवाज सुनाई देती है। लेकिन उसका दायरा विस्तृत होता है। तब उसको अपनी आवाज का कमाल दिखाना होता है।

इस क्षेत्र में रोजगार की पर्याप्त संभावनाएँ हैं। विशेषकर भाषा का अध्ययन करने वाले विद्याथियों के लिए। सूत्र संचालन में तो भाषा की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

Conclusion

“मैं उद्घोषक” एक अच्छी तरह से लिखी गई कहानी है, जो पाठकों को प्रेरित और प्रभावित करती है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सफलता के लिए कड़ी मेहनत और लगन आवश्यक है।

Oonjalil Summary in Malayalam

Oonjalil Summary in Malayalam

Oonjalil begins with Kalyani sitting on a swing, reminiscing about her husband who died a few months ago. She remembers their happy days together and how much she misses him.

Kalyani is still in shock from her husband’s death. She can’t believe that he is gone and that she will never see him again. She feels lost and alone.

Oonjalil Summary in Malayalam

ജീവിതരേഖ: എറണാകുളം ജില്ലയിൽ തൃപ്പൂണിത്തുറയിൽ ജനനം. സസ്യശാസ്ത്രത്തിൽ ബിരുദം. 1931- ൽ അധ്യാപകനായി. ഭാനുമതിയമ്മ ഭാര്യ. 1966-ൽ ഒല്ലൂർ ഗവ: ഹൈസ്കൂളിൽ നിന്നും അധ്യാപകനായി വിരമിച്ചു. മുല്ലനേഴിയുടെ പ്രിയ അധ്യാപകനായിരുന്നു വൈലോപ്പിള്ളി.

Oonjalil Summary in Malayalam 1

വൈലോപ്പിള്ളി
(1911 മെയ് 11, 1985 ഡിസംബർ 22)

വൈലോപ്പിള്ളി എന്ന കവി
ധനുമാസത്തിലെ തിരുവാതിര രാവുപോലെ 
മഞ്ഞിൽ കുളിരണിഞ്ഞ് നിലാവിൽ സ്വപ്നം 
കണ്ടു നിൽക്കുന്ന റൊമാന്റിസിസ
പ്രസ്ഥാനത്തിന്റെ ഒടുവിലത്തെ യാമത്തിൽ വന്നു
പിറന്ന കവിയാണ് വൈലോപ്പിള്ളി.

റിയലിസത്തിന്റെ പകൽ വെളിച്ചത്തിലാണ് അദ്ദേഹം വളർന്നത്. എന്നാൽ താൻ ഏതിൽ പിറന്നുവീണുവോ ആ ആതിരരാവിന്റെ കുളിർമയും സ്വപ്നദർശനകൗതുകകവും അദ്ദേഹത്തിന്റെ ആത്മാവിൽ

ശാശ്വതമുദ്രകളണിയിച്ചു. ഇടയ്ക്കിടയ്ക്ക് അവയിലേക്കു വഴുതി വീണു മയങ്ങുന്നതദ്ദേഹ ത്തിനിഷ്ടമാണ്. എങ്കിലും ആ നിദ്രാവത്വത്തിന്റെ നിമിഷങ്ങളിലല്ല വിജംഭിത വീര്യമായ കർമ്മൗത്സുക്യത്തിന്റെ നിമിഷങ്ങളി ലാണ് അദ്ദേഹത്തിന്റെ തനിമ പ്രകടമാകുന്നത്.

അതുകൊണ്ട് മലയാള കവിതയിലൊരു യുഗപരിവർത്തനത്തിന്റെ ഹരിശ്രീ യായ കവി നാദങ്ങളിൽ ശ്രീ തന്നെയാണദ്ദേഹം. സാമ്പത്തിക സാംസ്കാരിക രംഗങ്ങളിൽ അവശ്യം ഭാവിയായ വിപ്ലവങ്ങളെ ക്കുറിച്ച് സോദ്ദേശമെന്നുപോലും ഒരു നിരൂപകനു വിവരിക്കാവുന്ന വിധത്തിൽ ബോധപൂർവ്വം കവിതയെഴുതിയ കവിയാണ് അദ്ദേഹം. പ .ഇതുപോലെ പുതുയുഗചേതനയെപ്പറ്റി യുക്തിപൂർവ്വം ചിന്തി ക്കുകയും, ചിന്തയെ വൈകാരികാനുഭൂതിയിൽ അലിയിക്കു കയും ചെയ്യാൻ കഴിഞ്ഞ കവികൾ വേറെയില്ല.

വിപ്ലവക്കലി കൊണ്ടു പാടിയവരുണ്ട്. 
വിപ്ലവത്തെ സമചിത്തതയോടെ സമീ
പിക്കുകയും അംഗീകരിക്കുകയും
ചെയ്തവരുണ്ട്. എന്നാൽ ഏകകാലത്ത് 
വിപ്ലവാദർശത്തെ വിലയിരുത്തുകയും, വിപ്ലവാ 
വേശത്തോടെ പാടുകയും ചെയ്തവർ ചുരുക്കം.

അവരിലും വിശേഷിച്ച് വിപ്ലവത്തിന്റെ ആത്യന്തികത കണ്ടറിയുകയും അതിന്റെ സർഗ്ഗാത്മകവും സംഹാരാത്മകവുമായ രണ്ടുവശ ങ്ങളെക്കുറിച്ചും ഉള്ളിൽത്തട്ടി ചിന്തിക്കുകയും ചിന്തിക്കാതെ ഉറ ങ്ങുകയോ ചിന്തിക്കാതെ ആവേശത്തിൽ മുഴുകുകയോ ചെയ്യുന്നവരെ ഉണർത്തിച്ചിന്തിപ്പിക്കുകയും ഇരുത്തിച്ചിന്തിപ്പിക്കുകയും ചെയ്ത കവി വൈലോപ്പിള്ളിയാണ്.

പുരുഷായുസ്സിന്റെ ഉത്തരാർദ്ധത്തിലേക്ക് കടക്കുന്നതിനു മുൻപേ അതിനെക്കുറിച്ചുള്ള ഭയാശങ്കകളും അതുസംബന്ധ മായി വന്നുചേരുന്ന ആത്മീയവും മാനസികവുമായ ഹാസവും ചിലരെ പീഡിപ്പിക്കുന്നു. വ്യക്തിതനയിൽ തനിയേ വന്നുചേരുന്ന അത്യഗാധമായ ഒരു പരിണാമമാണിതെന്നും.

ഓരോ വ്യക്തി ചേതനയ്ക്കും പ്രഭാതവും മദ്ധ്യാഹ്നവും സായാഹ്നവുമുണ്ടന്നും, മദ്ധ്യാഹ്നത്തിൽ നിന്ന് പെട്ടെന്ന് അപരാഹ്നത്തിലേക്കു കടക്കുന്നതോടെ വലിയൊരു പതനബോധമുണ്ടാകുന്നുവെന്നും അദ്ദേഹം അഭിപ്രായപ്പെടുന്നു. വൈലോപ്പിള്ളിയുടെ കവിതക ളിൽ പലപ്പോഴും ഇതു രണ്ടും പ്രച്ഛന്നവേഷങ്ങളായി പ്രത്യക്ഷ പ്പെടാറുണ്ട്. വാർദ്ധക്യത്തെക്കുറിച്ചുള്ള ഭീതിബോധങ്ങൾ ചില കവിതകളിൽ മറ നീക്കി പുറത്തുവന്നിട്ടുമുണ്ട്.

ഭീതിബോധങ്ങൾ ചില കവിതകളിൽ മറ നീക്കി പുറത്തുവന്നിട്ടുമുണ്ട്.

“കലുഷിതമെൻ ജീവിതമൂറി-
 ക്കവിതകളായതു കോരി 
പാഴ്നരയോടു പകരം വീട്ടി –
പാനം ചെയ്തുരസിപ്പൻ          

– (ഓർമ്മകൾ)

എന്നാൽ ജീവിതചഷകം മോന്തുമ്പോൾ ഒരു തുള്ളി ബാക്കി വയ്ക്കാതെ ഭംഗിയായി ആസ്വദിക്കുന്ന അനുഭവവും വൈലോപ്പിള്ളിയുടെ ചില കവിതകളിൽ കാണാം. എല്ലാ കലകളിലും വച്ച് മഹത്തരമാണ് ജീവിതകല എന്നറിഞ്ഞ ഊഞ്ഞാലിലെ വൃദ്ധൻ നിത്യയൗവ്വനഭൂഷിതനാണ്. കയറുകൊണ്ട് ആത്മാവിനു കൊലക്കുടുക്കുണ്ടാക്കാം.

ശരീരത്തിന് ഇരുന്നാടി ഉല്ലസിക്കാ നുള്ള ഊഞ്ഞാലുണ്ടാക്കാം. രണ്ടാമതു സാധിച്ചുവെന്നതാണ് ആ വ്യദ്ധന്റെ വിജയം. ജീവിതത്തിലെ മൂന്നാമത്തെ ദശയെന്ന് യുങ് വിശേഷിപ്പിക്കുന്ന വാർദ്ധക്യത്തെ (ബാല്യകൗമാരങ്ങൾ, യൗവ്വനം, വാർദ്ധക്യം) കലാപരമായി ആസ്വദിക്കാൻ ആ വൃദ്ധനും കണ്ട്

ത്തിയിരിക്കുന്നു. സർവ്വാത്മനാ ജീവിതത്തെ 
സ്നേഹിക്കാൻ പഠിച്ചിരിക്കുന്നു അയാൾ.

ഊഞ്ഞാലിലെ കരളീയാന്തരീക്ഷം
കേരം തിങ്ങുന്ന കേരളീയാന്തരീക്ഷവും അതിന്റെ ഔന്നത്യവും സാംഗോപാംഗ മഹത്വവും ഇളനീർപോലുള്ളതിന്റെ വൈലോപ്പിള്ളി കവിത യുടെ വൈശിഷ്ട്യം’ തന്നെ. മാധുര്യവും നൈർമ്മല്യവും അതിൽ വ്യാപിച്ചു കി കുളിർമ്മയാണ്. എം.എൻ. വിജയൻ പ്രസ്താവിച്ചതുപോലെ അതു കേൾക്കുന്ന കരള ത്തിന്റെ ബാഹ്യപ്രകൃതി മാത്രമല്ല, സംസ്കാരത്തിന്റെ e ആകെത്തു കയാകുന്നു.

കേരളീയ ഗ്രാമീണജീവിതത്തിന്റെ
സൗഭാഗ്യങ്ങളും, വേദനകളും, ആനന്ദങ്ങളും,
സ്വപ്നങ്ങളും, സങ്കൽപ്പങ്ങളും
യാഥാർത്ഥ്യങ്ങളും, മമതകളും ആവേശങ്ങളും 
ഏറ്റവുമധികം പദേപദേ സ്പന്ദിക്കുന്ന
കാവ്യസഞ്ചയനമാണ്
സംക്രമ പുരുഷന്റേത്.

കവിതാച്ചുരുക്കം

വൈലോപ്പിള്ളിയെന്ന ഒരു വെറ്റില നൂറുതേച്ചു നീ തന്നാലും. ഈ തിരുവാതിരരാവ് താംബൂല മുറുക്കാനുള്ള കൂട്ട് പ്രിയമാണ്. മഞ്ഞിനാൽ തണുത്തു

ചൂളിയിടുന്നെങ്കിലും തിരുവാതിരയുടെ പ്രേമലോലുപമായ അന്തരീക്ഷത്താൽ സുഖകരമാണ്. വാർദ്ധ ക്യത്തിലെത്തിയെങ്കിലും പ്രിയേ നമുക്കും ചിരിക്കുക. മാവുകൾ’ പൂക്കുന്ന ഈ ധനുമാസം നൽകുന്ന മധുരഗന്ധം യൗവ്വനത്തി ന്റേയും കഴിഞ്ഞകാലത്തിന്റേയും ജീവിതമാധുര്യത്തെ ഓർമ്മക ളിൽ കൊണ്ടെത്തിക്കുന്നു. മുപ്പതുവർഷം മുൻപ് പ്രിയേ നീ ഈ പൊൻതിരുവാതിരയെപ്പോൽ സുന്ദരമന്ദസ്മിതയായിരുന്നു.

ഇതു പോലൊരു രാവിൽ അന്നു നാം രാത്രിയിലാരും കാണാതെ ഊഞ്ഞാലിലാടി നൂറുവെറ്റിലതിന്നു ചുവന്ന ചുണ്ടുപോലുള്ള പ്രഭാതം വരെ. ആ വയസ്സൻ മാവിനെക്കുറിച്ചുള്ള ഓർമ്മയിലിന്നെന്റെ മനസ്സിലുണർന്നു. ഉണ്ണിക്കു കളിക്കാനൊരൂഞ്ഞാൽ അതിൽ കെട്ടിയിരിക്കുന്നു. ആ ഉണ്ണിയിന്ന് നേരത്തെയുറങ്ങിയെ ങ്കിൽ ഉറങ്ങട്ടെ.

ചിന്തകളില്ലാതെ ചിരിച്ചു രസിക്കുന്ന ബാല്യകാ ലത്തവർ സുഖമായുറങ്ങട്ടെ. രസനയുടെ ഇഷ്ടങ്ങളിൽ നിന്നും ജീവിതത്തിന്റെ തരളതയിലേക്കും പ്രണയത്തിലേക്കുമെത്തുന്ന തിന് കുറച്ചുകാലം വേണം. മാങ്ങയോടുള്ള കൊതിയിൽ നിന്നും മാമ്പൂവിന്റെ

മദഗന്ധത്തിലെത്താൻ കുറച്ചുനാളുകൾ വേണം. ഈ നിലാവിന്റെ വശ്യശക്തിയാലാകാം എന്റെ ഉള്ളിലൊരാൾ ഉണരുന്നു. യൗവ്വനകാലത്തിന്റെ തീഷ്ണതയിൽ ഈ ഊഞ്ഞാലിൽ നീ വന്നിരിക്കുക. ഈ പതുക്കെ ഇളം കാറ്റേറ്റെന്നപോൽ നിന്നെ ഞാനാട്ടാം. ഇതു പറയവെ നീയെന്തിനാണ് ചിരിക്കുന്നത്. നിന്റെ തായി നീ യൗവ്വനത്തിൽ കാത്തുസൂക്ഷിച്ച ആ മനോഹരസ്മിതം – ഇപ്പോഴും നിന്നിലുണ്ട് പ്രിയേ.

ഈ ഊഞ്ഞാൽ പടിയിന്മേൽ ചെറുവെള്ളിത്താലി പോലെ ചേർന്നി രിക്കുക. മെല്ലിച്ച എന്റെ കൈകൾക്ക്, ഇഷ്ടസന്താനമായി മാറി നിന്റെ തടിച്ച് ഉദരം. നമ്മുടെ മകൾ നല്ല കുടുംബിനിയായി നഗ ര ത്തിൽ കഴിയുന്നു. എങ്കിലും സ്വപ്നം കാണാം. ഈ നാട്ടിൻപുറം ഇവിടെ തിരുവാതിരയാടാൻ അമ്പിളി (ചന്ദ്രൻ) ഈ നാട്ടിൻപുറത്ത് ആയിരം കൽമണ്ഡപത്തിൽ തെളിയിക്കുന്നു.

വലിയ ദുഃഖത്തിലും ജീവിതോല്ലാസത്തിന്റെ വേരുറപ്പ് വേറെവിടെക്കാണാനാകും? പാഴ്ചത്തിന്റെ തണുപ്പിനാൽ ചുളിഞ്ഞുപോകുമെങ്കിലും വിശപ്പിനാൽ വിറയ്ക്കുകിലും അയൽപക്കത്തെ പാവം സ്ത്രീകളുടെ തിരുവാതിരപ്പാട്ട് നീ കേൾക്കുന്നില്ല.

മുകളിലൂടെ പാറിപ്പോ കുന്ന യുദ്ധവിമാനം വേട്ടപ്പക്ഷിയെപ്പോലെ പറന്നുപോകുന്നു. ഒരു ദുഃസ്വപ്നം പോലെ, പാഞ്ഞു മാഞ്ഞു പോകുമീ കാലുഷ്യം. എന്നാൽ നാമാസ്വദിക്കുന്ന തിരുവാതിരയും, തിരുവാതിര നക്ഷത്രവും മിന്നും ആകാശത്ത് തീക്കട്ടപോൽ മിന്നിത്തെളിയുന്നു.

തിരുവാതിരയിൽ മാവുകൾ പൂക്കും, രാഗോന്മീലമായി നമ്മളെ പ്പോലെ ആം ആകാശത്ത് ചന്ദ്രൻ നിറഞ്ഞു നിൽക്കും. മനുഷ്യർ പരസ്പരം സ്നേഹിക്കും ഈ ഭൂമിയിൽ അധികാരത്തോടെ വസിക്കും. ജീവിതക്കുരുക്കെന്നെ കയറിനെ ഊഞ്ഞാലാക്കി മാറാൻ കഴിയുന്നതല്ലേ ജയം. ഈ തിരുവാതിര രാവിൽ മനസ്സിനെ നൃത്തലോലമാക്കുന്ന ആ ഗാനം ‘കല്ല്യാണി കളവാണി ഗാനം പ്രിയേ നീയാലപിക്കുക.

എന്റെ മനസ്സിനെ പുളകിതമാക്കിയ ആ ഗാനം സ്വർണ്ണക്കമ്പികൾ പാകിയ നിന്റെ മധുരനാദമുതിർക്കുന്ന കണ്ഠനാളത്തിൽ നിന്നുമൊഴുകവേ, ആലോലം നീളുന്ന ആ പാട്ടിന്റെ ഈരടികൾ ഊഞ്ഞാൽ വള്ളിയിലെന്റെ മനതാരിളകിയാടവേ, വെള്ളിക്കമ്പി കൾ നരപാടിയ നീയല്ല എന്റെ മുന്നിൽ; കണ്വമാമുനിയുടെ പ്രിയ മകൾ

ശകുന്തളയാണ്. ഇത് പൂനിലാവുനിറഞ്ഞ മുറ്റമല്ല ഇത്; ഹിമാചലത്തിൻ താഴ്വാരത്തിലെ മനോഹരമായ മാലിനി നദീതീ രമാണിത്. ചന്ദ്രതാരകനിബന്ധമായ ആകാശമല്ല നീ ഓമനിച്ച വന ജ്യോത്സനയാണ് മുകളിൽ പൂത്തുനിറഞ്ഞുനിൽക്കുന്നത്. നിന്റെ ഇളമാൻ നിറയെ പുള്ളികളുള്ള ദീർഘാപാംഗൻ മാഞ്ചുവട്ടിൽ വിശ്രമിക്കുന്നു.

ജീവിതത്തെ സ്നേഹിക്കുവാൻ പഠിച്ചൊരു മനസ്സിനാൽ സന്തോ ഷത്തോടെ നീ പാടുക. വെള്ള തുണിത്തുമ്പിൽ പൊതിഞ്ഞു സൂക്ഷിക്കുന്ന ദേവവധുവായ തിരുവാതിരയാൽ വേഗമേറവെ, നാളെ നാം പലവിധ പണികളെടുത്ത് പകൽ വേളയിൽ ക്ഷീണി തയാകുമ്പോൾ ഈ രാത്രിയെക്കുറിച്ചോർത്തു ലജ്ജിക്കുമോ? എന്തിന് ? ജീവിതത്തിൽ സുഭഗവും സാരവുമായ ചില നല്ല സന്ദർങ്ങൾ – നല്ല നിമിഷങ്ങൾ മാത്രമുണ്ടാകാം. അതിൽ ചിലത് ഇപ്പോഴാടുന്നൊരീ ഊഞ്ഞാലിലാടിത്തീർക്കാം. നീയൊരു പാട്ടും കൂടി പാടി നിർത്തുക. നമുക്കു പോകാം.

ആസ്വാദനം

യാഥാർത്ഥ്യങ്ങളിൽ നിന്ന് സ്വപ്നത്തിലേക്കുള്ള ഒരു ഊഞ്ഞാലാട്ട മാണീ കവിത. ‘ഊഞ്ഞാൽ’ കവിതയിലേക്ക്പ്ര വേശിക്കുമ്പോൾ ആസ്വാദക

ഹൃദയങ്ങളിൽ ആദ്യം ഉയരുന്ന ഒരു സന്ദേഹം അത ന്നെയാണ്. ഇതൊരു സ്വപ്നമാണോ? ‘വൈലോപ്പിള്ളി കവിതക ളിലെ നിരന്തര സാന്നിധ്യമാകുന്ന ദാമ്പത്യപ്പൊരുത്തക്കേടുകളും, പരാ തിയും പരിഭവവും നിറഞ്ഞ കുറ്റപ്പെടുത്തലുകളും ഒക്കെ മാറ്റിവെച്ച് സമാധാനപൂർണ്ണവുമായ ദാമ്പത്യത്തിലെ വാർധക്യം, ഈ കവിത യിൽ നിറയുകയാണ്.

തിരുവാതിര നിലാവുപോലെ ശുഭവും, സുന്ദ രവുമാണീ കവിത. കവിത ആരംഭിക്കുന്നതുതന്നെ തികച്ചും പോസിറ്റീവായ വിചാ രധാരയോടുകൂടിയാണ്. ഒരു വെറ്റില നൂറു തേച്ചു നീ തന്നാ ലും, ഈ തിരുവാതിരരാവുപോലെ മഞ്ഞിനാൽ ചുറ്റുമ്പോഴും, മധുരം ചിരിക്കുന്നു നമ്മുടെ ജീവിതം. വാർധക്യം പലതു കൊണ്ടും ഈ കാലഘട്ടത്തിൽ മടുപ്പിന്റെ അവശതയുടെ, അവ ഗണനയുടെ ഒക്കെ ഇരുണ്ട ലോകമായി മാറുന്നു.

അങ്ങനെ യൊരു അവസ്ഥയിലാണ് മഞ്ഞുകൊണ്ടു ചുളുമ്പോഴും മധുരം ചിരിക്കുന്ന കവിയേയും, ഭാര്യയേയും നാം കവിതയിൽ കണ്ട ത്തുന്നത്. ചില്ലറ വേദനകളും, ചെറിയ ബുദ്ധിമുട്ടുകളൊന്നും തന്നെ അവരുടെ ദാമ്പത്യജീവിതത്തിന്റെ ഈ അവസാനരംഗ ത്തിന് മങ്ങലേൽപ്പിക്കുന്നില്ല. അതുകൊണ്ടുതന്നെ യാണ് യാഥാർത്ഥ്യത്തിനു

മുകളിൽ കൂടിയുള്ള സ്വപ്നങ്ങളുടെ ഊഞ്ഞാലാട്ടമായി ഈ കവിത മാറുന്നത്. ‘നര’ പലപ്പോഴും അനുഭവങ്ങളുടെ പാഠങ്ങൾ തന്നെയാണ്. ജീവിതത്തിന്റെ പല രംഗങ്ങളിലും പ്രകടിപ്പിച്ച പക്വതയില്ലായ്മ കൾക്കുള്ള ഒരു നല്ല മറുപടി. വാർധക്യത്തിൽ, ‘നര’ വീണ ജീവി തത്തിലേക്ക് തിരുവാതിരരാവ് വിരുന്നെത്തുമ്പോൾ, മുമ്പ് ജീവി തത്തിൽ എടുത്തു ചാട്ടങ്ങൾക്കുള്ള നല്ല മറുപ എന്ന പ്രതീകം മാറുന്നു.

ഒത്തുതീർപ്പുകളുടേയും, പര സ്പരം തിരിച്ചറിഞ്ഞ കുറവുകളുടേയും, ഗുണങ്ങളുടേയും നല്ലൊരു തിരിഞ്ഞുനോട്ടം കൂടി വാർധക്യം പകർന്നു തരുന്നു. സ്വാഭാവികമായും ജീവിതത്തിലെ ഒരു രണ്ടാം മധുമാസക്കാല മായി അതുമാറുന്നു. എൻ.എൻ.കക്കാടിന്റെ ‘സഫലമീയാത്ര’ എന്ന കവിത ഈ അവസരത്തിൽ കടന്നുവരികയാണ്.

ആ കവിതയുടെ അന്തരീക്ഷം തികച്ചും വ്യത്യസ്തമാണ്. ജീവിതത്തിലെ ഏറ്റവും വേദന നിറഞ്ഞ കാലഘട്ടമാണ് ആ കവിതയിലെ അന്തരീക്ഷം. അർബുദം ബാധിച്ച തൊണ്ടയുമായി, കവി അവിടെ വേദന തിങ്ങുന്ന ഓരോർമ്മയാ വുകയാണ്. എങ്കിലും അരികിൽ തന്റെ പ്രിയതമ

സ്നേഹ ത്തോടെ ചേർന്നുനിൽക്കുമ്പോൾ; ജീവിതം സഫലമാകുന്നു എന്നു ആ കവിതയിൽ എൻ.എൻ.കക്കാട്പ റഞ്ഞുവെക്കുന്നു. പരസ്പരം ഊന്നുവടികളാകുന്ന; വേദനയുടെ അവസ്ഥയിലും – സ്നേഹം മരുന്നായിത്തീരുന്ന ഒരന്തരീക്ഷം ‘സഫലമീയാത് എന്ന കവിതയിൽ നിറഞ്ഞുനിൽക്കുന്നുണ്ട്. ‘ഊഞ്ഞാലിൽ സംത്യ പ്തിയുടെ വാർധക്യമാണ്.

എങ്കിലും പരസ്പരമുള്ള ദാമ്പത്യ ത്തി എല്ലാമെല്ലാമായ ആ പങ്കുവെയ്ക്കലിൽ ഇരുകവിതകളും സാമ്യം പുലർത്തുന്നു. ‘സഫലമീയാത്ര യിലും ഈ കവിതയിലെ ന്നപോലെ ‘ആതിരനിലാവ്’ ഒരു കഥാപാത്രമായി മാറുന്നുണ്ട്. ദാമ്പത്യത്തിന്റെ ആരംഭത്തിൽ, മധുവിധുവിന്റെ ലഹരിയിൽ ഇതേ പോലെ ആതിരനിലാവിന്റെ ലഹരിയിൽ അവർ സ്വയം അലിഞ്ഞിട്ടുണ്ട്.

പുലരിയെത്തുവോളം, ഊഞ്ഞാലിൽ സ്വയം മറന്നിട്ടുണ്ട്. ഒരാവർത്തനം കവി ആവശ്യപ്പെടുന്നു. യൗവ്വനം അസ്തമിച്ചിട്ടു ണ്ടാകാം. ജീവിതചക്രത്തിന്റെ കാലചകം) തിരിച്ചിലിൽ എല്ലാം മാറിയിട്ടുണ്ടാകാം. എങ്കിലും പഴയ ഓർമ്മകളെ ഒന്നുകൂടി പൊടി തുടച്ച്

മിനുക്കിയെടുക്കാം. പഴയകാലത്തിന്റെ ഓർമ്മകളുമായി, പഴയ പുഞ്ചിരി മാത്രം കവി തന്റെ പ്രാണപ്രേയസിയുടെ മുഖത്തുനിന്ന് കണ്ടെടുക്കുന്നു. ആ മന്ദസ്മിതത്തിൽ, ആ ദാമ്പത്യ ത്തിന്റെ സംതൃപ്തി മുഴുവൻ നിറഞ്ഞു നിൽക്കുന്നുണ്ട്. സുഖവും സംതൃപ്തിയും നിറഞ്ഞ നാട്ടിൻപുറത്തിന്റെ വിശു ദ്ധിയെ വാഴ്ത്താൻ കവി മറക്കുന്നില്ല.

നഗരത്തിന്റെ വമ്പു കൾക്കും അപ്പുറം, നാട്ടിൻപുറത്തിന്റെ നന്മയെ പ്രതിഷ്ഠിക്കാൻ കവി പ്രത്യേകം ശ്രദ്ധിക്കുന്നുണ്ട്. സ്നേഹത്തിന്റേയും, ഐക്യത്തിന്റെയും ആ മണ്ണിലാണ് ബന്ധങ്ങളുടെ വേരുകൾ കൂടുതൽ ആഴത്തിൽ ഉറയ്ക്കുന്നത്. ഇതൊക്കെയാണെങ്കിലും ചില യാഥാർത്ഥ്യങ്ങളിലേക്ക്, നയിക്കുന്നുണ്ട്.

കവി നമ്മെ കാൽപ്പനികതയുടെ നിറവിലും, യാഥാർത്ഥ്യത്തിന്റെ രജതരേഖകൾ കവി കാണാതെ പോകുന്നില്ല. അല്ലെങ്കിലും “തുടുവെള്ളാമ്പൽ പൊയ്കയല്ല, ജീവിതത്തിന്റെ കടലേ കവിതയ്ക്ക് ഞങ്ങൾക്കു മഷിപ്പാത്രം” – എന്ന് പാടിയ കവിയ്ക്ക് അങ്ങനെയൊന്നും കണ്ണടയ്ക്കാൻ കഴിയില്ല. നാട്ടിൻപുറത്തിന്റെ

നന്മയും വിശുദ്ധിയും പാടുന്നതോടൊപ്പം വൈലോപ്പിള്ളി അവിടത്തെ ‘പഞ്ഞ ത്തെക്കുറിച്ചും (ഇല്ലായ്മ) പറ യുന്നു. ഇല്ലായ്മകളുടെ വറുതിയിലും, കണ്ണീരിന്റെ പാട്ടിനാൽ തിരു വാതിരയെ വരവേൽക്കുന്ന അയൽസ്ത്രീകളുടെ നൊമ്പരം കവി കാണാതെ പോകുന്നില്ല. അങ്ങകലെ നടക്കുന്ന യുദ്ധത്തിന്റെ കെടുതി അവരെയും

ജീവിതത്തിന്റെ രണ്ടറ്റം കൂട്ടിമുട്ടി പാടുപെടുമ്പോഴും, തിരുവാതിരയുടെ നിറവിനു വേണ്ടി പാടുകയാണവർ. ‘തിരുവാതിര തീക്കട്ട പോലെ – എന്ന പഴമൊഴി അവരുടെ കാര്യത്തിൽ പൂർണ്ണമായും ശരിയാവുകയാണ്. തന്റെ ജീവിത സൗഭാഗ്യങ്ങളുടെ സമൃദ്ധിയിലും, കവി തൊട്ടടു ത്തുനിന്നുയരുന്ന വേദനയുടെ കനലുകൾ കാണാതെ പോകുന്നില്ല. ഇവിടെയാണ് വൈലോപ്പിള്ളിയിലെ ശുഭാപ്തി വിശ്വാസിയെ നാം അടുത്തറിയുന്നത്.

എല്ലാം മാറ്റങ്ങൾക്കു വിധേയമാണ്; പ്രകൃതി പോലും. പരസ്പരം കലഹിക്കുന്ന, യുദ്ധം ചെയ്യുന്ന ജനതതി കൾ പരസ്പരം സ്നേഹിക്കും. യുദ്ധം തോൽക്കുകയും മനുഷ്യൻ ജയിക്കുകയും ചെയ്യും. അങ്ങനെ കൊലക്കുരുക്കുകൾ പോലും രൂപം മാറി വിനോദത്തിന്റെ

ഊഞ്ഞാലുകളാകും…. ജീവിതത്തെ സ്നേഹിക്കുവാൻ വേണ്ടി പാടാൻ കവി ഭാര്യയോട് ആവശ്യപ്പെടുന്നു. മനസ്സിനെ നൃത്തം ചെയ്യിക്കാൻ പോലും ശക്തി യുള്ള പ്രേയസിയുടെ സ്വർണ്ണക്കമ്പികൾ മീട്ടുന്ന കണ്ഠത്തിൽ നിന്നുള്ള ഗാനം. കവിയുടെ കരൾ ഊഞ്ഞാൽക്കയർപോലെ ആ ഗാനത്തിൽ കമ്പനം കൊള്ളുകയാണ്.

സംഗീതം എല്ലാം മാറ്റിമറിക്കുന്നു. പ്രായവും, പശ്ചാത്തലവും, കാലവും, അന്തരീക്ഷവും സകലതും മാറുന്നു. ജീവിതം പുതുമയുള്ളതാക്കി മാറ്റുന്നു. ജീവിതത്തെ അഗാധമായി സ്നേഹിക്കുവാൻ സംഗീത മായി പ്രാപ്തരാക്കും. അങ്ങനെ ഈ തിരുവാതിയ രാവ് സന്തോഷത്തിന്റെ ഏറ്റവും വലിയ സന്ദർഭമാകട്ടെ.

അവിടെ സംഗീത സാന്ദ്രമാകുന്ന തോടെ പൂനിലാവണി മുറ്റം മാലിനിതീരവും, വെൺനര കലർന്ന പനി, കണ്യമുനിയുടെ ആശ്രമ കന്യകയുമായിത്തീരുന്നു. ഭാവന യുടെ അളവറ്റ പ്രവാഹത്തെ നൊടിയിടകൊണ്ട് സൃഷ്ടിക്കാൻ, സംഗീതത്തിനു സാധിക്കുന്നു. മനുഷ്യായുസ്സിൽ അല്പമായി മാത്രം അനുഭവിക്കാൻ കഴിയുന്ന ചില നിമിഷങ്ങൾ – (മാത്രകൾ) – അതിലൂടെ

കടന്നുപോകുന്നു കവിയും പതിയും. അനവദ്യസുന്ദരമായ അനുഭൂതികളുടെ അളവറ്റ പ്രവാഹമാണീ സന്ദർഭത്തിൽ വൈലോപ്പിള്ളി കവിത. പിന്നീട് ഓർത്തെടുക്കാൻ വേണ്ടിയുള്ള ഓർമ്മകളുടെ ഒരു കുങ്കുമച്ചെപ്പ്. കവിതയുടെ അവസാനത്തിൽ മാസ്മരികമായ സ്നേഹത്തിന്റെ മാന്ത്രികാന്തരീക്ഷം സൃഷ്ടിക്കാൻ വൈലോപ്പിള്ളിയ്ക്ക് സാധിക്കു ന്നുണ്ട്.

നിസ്വാർത്ഥമായ സ്നേഹത്തിന്റെ നിഷ്കാമമായ പങ്കുവെയ്ക്കലിന്റെ ഏറ്റവും ഉദാത്തമായ ജീവിതവേദിയാണ് വാർധക്യത്തിലെ ദാമ്പത്യം. പരസ്പരം താങ്ങാകാൻ കഴിയുന്ന, എല്ലാം അറി യുന്ന അവസ്ഥ. മറ്റാർക്കുമായി മാറ്റിവെയ്ക്കാനില്ലാത്ത വിലപ്പെട്ട നിമിഷങ്ങളിൽ അവർ മാത്രമായിത്തീരുന്ന, ഒരു ഗാനമായി അലി യുന്ന അപൂർവ്വ സന്ദർഭം. അതിന്റെ മനോഹാരിത ‘ഊഞ്ഞാലിൽ എന്ന കവിതയിൽ ഉടനീളം തുളുമ്പി നിൽക്കുന്നുണ്ട്. സ്നേഹത്തിന്റെ ശീതളിമയോടൊപ്പം.

വാത്സല്യത്തിന്റെ ആർദ തയും ഊഞ്ഞാലിനെ വ്യത്യസ്തമാക്കുന്നുണ്ട്. സ്നേഹം കൊണ്ട് മരണത്തെ നാശത്ത് തോൽപ്പിക്കുന്ന മനുഷ്യനെ സൃഷ്ടിക്കാൻ വൈലോപ്പിള്ളി താൽപ്പര്യം

കാണിക്കുന്നുണ്ട്. ഊഞ്ഞാലിന്റെ കയ റുകൊണ്ട് കൊലക്കുടുക്കുണ്ടാക്കാം. അതുപോലെതന്നെ ഉല്ല സിച്ച്, ഇരുന്നാടി രസിക്കാൻ ഊഞ്ഞാലും. ഈ കവിതയിൽ വൃദ്ധൻ രണ്ടാമത്തെ മാർഗ്ഗം സ്വീകരിച്ച് മരണത്തിനു മുകളിൽ മനുഷ്യാഹ്ലാദത്തിന്റെ വിജയം നേടുന്നു. ഒപ്പം വാർധക്യത്തേയും അയാൾ കീഴടക്കുന്നു.

ശുഭാപ്തി വിശ്വാസത്തിന്റെ നന്മയുടെ, സ്നേഹത്തിന്റെ വലി യൊരു വിജയഗാഥ തന്നെയാണ് ‘ഊഞ്ഞാൽ’ എന്ന കവിത. മന സ്സുകളുടെ മനോഹരമായ ചേർച്ചകൊണ്ട് ദാമ്പത്യം സുന്ദരമായ ‘സിംഫണി പോലെ ഹൃദ്യമാകുന്ന അനുഭവവും ഈ കവിത പങ്കുവെയ്ക്കുന്നു. അതുകൊണ്ടുതന്നെ സ്വപ്നം പോലെ സുന്ദ രമാണീ കവിത

വൈലോപ്പിള്ളി ശ്രീധരമേനോൻ (1911 – 85)

ശ്രീ എന്ന തൂലികാനാമത്തിൽ കുറച്ചുകാലം അറിയപ്പെട്ട വൈലോപ്പിള്ളി ശ്രീധരമേനോൻ മലയാള കവിതയിലെ യുഗപരിവർത്തനത്തിനു ഹരിശ്രീ കുറിച്ച് നായകനാണ്. റൊമാന്റിസ് ത്തിന്റെ അവസാന യാമത്തിൽ പിറന്നദ്ദേഹം അതിന്റെ മാസ്മരി കതയെ കൈവിടാതെതന്നെ യാഥാർത്ഥ്യത്തിന്റെ സ്ഥിതി വ്യവസ്ഥയിലേക്ക് പടർന്നുകയറിയത് മന്ദമായി സംഭവിച്ചുപോയ

അവ സ്ഥയാണ്. ഇടപ്പള്ളി കവികളുടെ കാല്പനികതയിൽ വീഴാതെ സമചിത്തത യോടെ, ആകാശങ്ങളോ അട്ടഹാസങ്ങളോ ഇല്ലാതെ, യുക്തി യുക്തമായ ചിന്തയിലൂടെ തന്റെ ആശയങ്ങളെ കവിതയിലേക്ക് കൊണ്ടെത്തിച്ചത് അദ്ദേഹമാണ്.

എന്നാൽ അപാരമായ സ്വാധീന വലയം അത് വായനക്കാരുമായി നേടിയിരിക്കും. പ്രവർത്തി ക്കാതെ സ്വപ്നം കാണുന്നവനോടും, പ്രവർത്തിക്കാതെ പ്രസം ഗിക്കുന്ന ബുദ്ധിജീവിയും, ഇച്ഛകൊണ്ടും വാക്കുകൊണ്ടും തൊഴിലാളികളുടെ കൂടെ നിന്നാലും പ്രവർത്തിക്കേണ്ടി വരുമ്പോൾ പക്ഷം മാറും ആ ദുരന്തം കൊണ്ടാണ് തൊഴിലാളി വർഗ്ഗം എന്നും രണ്ടാംതരക്കാരായി നിൽക്കേണ്ടി വരുന്നത്.

കന്നിക്കൊയ്ത്ത്, ശ്രീരേഖ, ഓണപ്പാട്ടുകൾ, വിത്തും കൈക്കോട്ടും കുന്നിമണികൾ കുരുവികൾ കയ്പവല്ലരി തുടങ്ങിയ കവിതകളിലെല്ലാം കൂടി വളർന്നു വന്ന കവിസ്വത്വം ബഹുമുഖങ്ങളെ പ്രകാശിപ്പിക്കുകയും, ജീവിതദർശനത്തിന് വ്യത്യസ്തമായ തലങ്ങൾ കണ്ടെത്തുകയും ചെയ്തു. വാർദ്ധക്യത്തെ തോൽപ്പിച്ച വൃദ്ധനേയും അദ്ദേഹം ചിത്രീകരിച്ചിട്ടുണ്ട്. വാത്സല്യത്തിന്റെ

ആർദ്രതയും സ്നേഹത്തിന്റെ വൈലോപ്പിള്ളിയുടെ കവിതയെ ശീതളിമയും മാധുര്യസംഭാവിത മാക്കുന്നു. ഓരോ കവിതയും ജീവിതാനുഭവങ്ങളുടെ പ്രതികരണമാണ്. ജീവിതത്തെ താത്വികപരമായി ചിത്രീകരിക്കാനുള്ള കഴിവ് കുമാരനാശാൻ കഴിഞ്ഞാൽ വൈലോപ്പിള്ളിയ്ക്കായിരിക്കും.

Conclusion:

In the end, Kalyani comes to realize that she cannot live in the past. She must move on with her life and find a way to be happy without her husband. She decides to focus on her children and to make a new life for herself.

फीचर लेखन Summary in Hindi

फीचर लेखन Summary in Hindi

फीचर लेखन” एक प्रकार का पत्रकारिता है, जो किसी विशेष विषय या व्यक्ति पर गहराई से जानकारी प्रदान करता है। फीचर लेखन में तथ्यों के साथ-साथ भावनाओं और विचारों को भी व्यक्त किया जाता है। फीचर लेखन का उद्देश्य पाठकों को किसी विषय या व्यक्ति के बारे में अधिक जानकारी प्रदान करना और उन्हें सोचने पर मजबूर करना है।

फीचर लेखन Summary in Hindi

फीचर लेखन का परिचय

फीचर लेखन लेखक का नाम :
डॉ. बीना शर्मा। (जन्म 20 अक्तूबर 1959.)

फीचर लेखन प्रमुख कृतियाँ :
‘हिंदी शिक्षण – अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य’, ‘भारतीय सांस्कृतिक प्रतीक’ आदि।

फीचर लेखन विशेषता :
डॉ. बीना का लेखन शिक्षा क्षेत्र और भारतीय संस्कृति से प्रेरित है। स्त्री विमर्श और समसामयिक विषयों पर आपका विशेष लेखन। आपका साहित्य भारतीय संस्कारों और जीवन मूल्यों के प्रति आग्रही है।

फीचर लेखन Summary in Hindi 1

फीचर लेखन विषय प्रवेश :
आज के दौर में फीचर लेखन पत्रकारिता क्षेत्र का आधार स्तंभ बन गया है। फीचर का मुख्य कार्य पाठक के सम्मुख किसी विषय का सजीव वर्णन करना होता है। प्रस्तुत पाठ में लेखिका फीचर लेखन का स्वरूप, उसकी विशेषताएँ, प्रकार आदि पर प्रकाश डालते हुए इस तथ्य को उद्भासित कर रही है कि फीचर लेखन जहाँ एक ओर समाज के दर्पण के रूप में कार्य कर सकता है, वहीं यह आजीविका का स्रोत भी बन सकता है।

फीचर लेखन पाठ का सार

स्नेहा एक पत्रकार है। आज वह और उसका पूरा परिवार आनंद और गर्व की भावना से भरा है। पत्रकारिता के क्षेत्र में फीचर लेखन के लिए दिए जाने वाले ‘सर्वश्रेष्ठ फीचर लेखन’ के लिए स्नेहा को राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। आज उसके परिवार द्वारा एक पार्टी का आयोजन किया गया है। स्नेहा के पति, उसके सास-ससुर, पुत्री प्रिया और पुत्र नैतिक उसे बधाई दे रहे हैं। स्नेहा की आँखों में खुशी के आँसू हैं।

फीचर लेखन Summary in Hindi 2

स्नेहा अतीत में खो जाती है। बी. ए. कर लेने के बाद पिता द्वारा भविष्य के बारे में पूछने पर वह पत्रकारिता का कोर्स करने है की इच्छा प्रकट करती है, जिसे माता द्वारा भी समर्थन मिलता है। स्नेहा पत्रकारिता का कोर्स ज्वाइन कर लेती है। पत्रकारिता की कक्षा का प्रथम दिवस – पहले लेक्चर में प्रोफेसर ने पत्रकारिता पाठ्यक्रम का पहला पेपर पढ़ाना शुरु किया। विषय था – फीचर लेखन। उन्होंने फीचर लेखन की विभिन्न परिभाषाओं को समझाते हुए कहा – फीचर लेखन के क्षेत्र में चर्चित जेम्स डेविस कहते हैं – ‘फीचर समाचारों को नया आयाम देता है, उनका परीक्षण करता है तथा उन पर नया प्रकाश डालता है।’

स्नेहा की फीचर लेखन में विशेष रुचि थी। उसके द्वारा प्रसिद्ध फीचर लेखक पी. डी. टंडन का उल्लेख करने पर प्रोफेसर ने बताया कि पी. डी. टंडन के अनुसार ‘फीचर किसी गद्य गीत की तरह होता है, जो बहुत लंबा, नीरस और गंभीर नहीं होना चाहिए। इससे पाठक बोर हो जाते हैं और ऐसे फीचर कोई पढ़ना नहीं चाहता। फीचर किसी विषय का मनोरंजक शैली में विस्तृत विवेचन है।’

इन परिभाषाओं के द्वारा स्नेहा अच्छी तरह समझ गई कि फीचर समाचारपत्र का प्राण तत्त्व होता है। पाठक की प्यास बुझाने, घटना की मनोरंजनात्मक अभिव्यक्ति की कला का नाम फीचर है। पत्रकारिता कोर्स के बीतते दिन-महीने, फीचर लेखन के संबंध में सुने हुए लेक्चर्स, प्रोफेसरों के साथ की गई चर्चाएँ, अध्ययन, परीक्षा, फीचर लेखन का प्रारंभ फीचर लेखन और आज का दिन। फीचर लेखन की सिद्धहस्त लेखिका बनना ही स्नेहा का एकमात्र सपना था।

फीचर लेखन Summary in Hindi 3

स्नेहा को याद आ रहा है वह दिन जब उसे पत्रकारिता कोर्स में फीचर लेखन पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया था। आज उसे अपना परिश्रम सार्थक होता नजर आ रहा था। रोचक प्रसंगों के साथ स्नेहा फीचर लेखन की विशेषताएँ बताने लगी – अच्छा फीचर नवीनतम जानकारी से परिपूर्ण होता है।

किसी घटना की सत्यता, तथ्यता फीचर का मुख्य तत्त्व है। फीचर लेखन में राष्ट्रीय स्तर के तथा अन्य महत्त्वपूर्ण विषयों का समावेश होना चाहिए क्योंकि समाचारपत्र दूर-दूर तक जाते हैं। साथ ही फीचर का विषय समसामयिक होना चाहिए।

फीचर लेखन में भावप्रधानता होनी चाहिए, क्योंकि नीरस फीचर कोई भी नहीं पढ़ना चाहता। फीचर से संबंधित तथ्यों का आधार दिया जाना चाहिए। विश्वसनीयता के लिए फीचर में तार्किकता आवश्यक है। तार्किकता के बिना फीचर अविश्वसनीय बन जाता है। फीचर में विषय की नवीनता होना आवश्यक है क्योंकि उसके अभाव में फीचर अपठनीय हो जाता है। फीचर में किसी व्यक्ति अथवा घटना विशेष का उदाहरण दिया गया हो तो उसकी संक्षिप्त जानकारी भी देनी चाहिए।

फीचर लेखन करते समय लेखक को पाठक की मानसिक योग्यता और शैक्षिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना चाहिए। प्रसिद्ध व्यक्तियों के कथनों, उद्धरणों, लोकोक्तियों और मुहावरों का प्रयोग फीचर में चार चाँद लगा देता है। फीचर लेखक को निष्पक्ष रूप से अपना मत व्यक्त करना चाहिए तभी पाठक उसके विचारों से सहमत हो सकेगा। फीचर लेखन में शब्द चयन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। लेखन की भाषा सहज, संप्रेषणीयता से परिपूर्ण होनी चाहिए। फीचर के विषयानुकूल चित्रों, कार्टूनों अथवा फोटो का उपयोग किया जाए तो फीचर अधिक प्रभावशाली बन जाता है।

फीचर लेखन Summary in Hindi 4

एक विद्यार्थी के पूछने पर स्नेहा बताती है कि फीचर किसी विशेष घटना, व्यक्ति, जीव-जंतु, तीज-त्योहार, दिन, स्थान, प्रकृतिपरिवेश से संबंधित व्यक्तिगत अनुभूतियों पर आधारित आलेख होता है। इस आलेख को कल्पनाशीलता, सृजनात्मक कौशल के साथ मनोरंजक और आकर्षक शैली में प्रस्तुत किया जाता है। फीचर अनेक प्रकार के हो सकते हैं।

फीचर लेखन मुख्य रूप से –

  1. व्यक्तिपरक फीचर
  2. सूचनात्मक फीचर
  3. विवरणात्मक फीचर
  4. विश्लेषणात्मक फीचर
  5. साक्षात्कार
  6. विज्ञापन फीचर

स्नेहा ने आगे फीचर लेखन करते समय बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताया :

  • फीचर लेखन में आरोप-प्रत्यारोप करने से बचना चाहिए।
  • फीचर लेखन में क्लिष्ट और आलंकारिक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
  • फीचर लेखन में झूठे तथ्यात्मक आँकड़े, प्रसंग अथवा घटनाओं का उल्लेख करना उचित नहीं है।
  • फीचर अति नाटकीयता से परिपूर्ण नहीं होना चाहिए।
  • फीचर लेखन में लेखक को अति कल्पनाओं और हवाई बातं के प्रयोग से बचना चाहिए।

इन सभी सावधानियों को ध्यान रखेंगे तो फीचर लेखन अधिकाधिक विश्वसनीय और प्रभावी बन सकता है।

फीचर लेखन की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए स्नेहा ने बताया कि फीचर लेखन के मुख्य तीन अंग हैं :

  1. विषय का चयन : फीचर लेखन में विषय का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि विषय रोचक, ज्ञानवर्धक और उत्प्रेरित करने वाला हो। अतः फीचर का विषय समयानुकूल और समसामयिक होना चाहिए। विषय जिज्ञासा उत्पन्न करने वाला हो।
  2. सामग्री का संकलन : फीचर लेखन में विषय संबंधी सामग्री का संकलन करना महत्त्वपूर्ण अंग है। उचित जानकारी और अनुभव के अभाव में लिखा गया फीचर नीरस सिद्ध हो सकता है। विषय से संबंधित उपलब्ध पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं से सामग्री जुटाने के अलावा बहुत-सी सामग्री लोगों से मिलकर, कई स्थानों पर जाकर जुटानी पड़ती है।
  3. फीचर योजना : फीचर लिखने से पहले फीचर का एक योजनाबद्ध ढाँचा बनाना चाहिए।

एक अन्य विद्यार्थी की जिज्ञासा शांत करते हुए स्नेहा ने बताया – निम्न चार सोपानों अथवा चरणों के आधार पर फीचर लिखा जाता है :

  • प्रस्तावना : प्रस्तावना में फीचर के विषय का संक्षिप्त परिचय होता है। यह परिचय आकर्षक और विषयानुकूल होना चाहिए। इससे पाठकों के मन में फीचर पढ़ने की जिज्ञासा जाग्रत होती है और पाठक अंत तक फीचर से जुड़ा रहता है।
  • विवरण अथवा मुख्य कलेवर : फीचर में विवरण का महत्त्वपूर्ण स्थान है। फीचर में लेखक स्वयं के अनुभव, लोगों से प्राप्त जानकारी और विषय की क्रमबद्धता, रोचकता के साथसाथ संतुलित तथा आकर्षक शब्दों में पिरोकर उसे पाठकों के सम्मुख रखता है जिससे फीचर पढ़ने वाले को ज्ञान और अनुभव से संपन्न कर दे।
  • उपसंहार : यह अनुच्छेद संपूर्ण फीचर का सार अथवा निचोड़ होता है। इसमें फीचर लेखक फीचर का निष्कर्ष भी प्रस्तुत कर सकता है अथवा कुछ अनुत्तरित प्रश्न पाठकों के ऊपर भी छोड़ सकता है। उपसंहार ऐसा होना चाहिए जिससे पाठक को विषय से संबंधित ज्ञान भी मिल जाए और उसकी जिज्ञासा भी बनी रहे।
  • शीर्षक : विषय का औचित्यपूर्ण शीर्षक फीचर की आत्मा है। शीर्षक संक्षिप्त, रोचक और जिज्ञासावर्धक होना चाहिए। नवीनता, आकर्षकता और ज्ञानवृद्धि उत्तम शीर्षक के गुण हैं।

Conclusion

फीचर लेखन एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन यह एक ऐसा कार्य भी है, जो पाठकों को किसी विषय या व्यक्ति के बारे में अधिक जानकारी प्रदान कर सकता है और उन्हें सोचने पर मजबूर कर सकता है। फीचर लेखन में तथ्यों के साथ-साथ भावनाओं और विचारों को भी व्यक्त किया जाता है, जिससे पाठकों को विषय या व्यक्ति के बारे में अधिक गहराई से समझने में मदद मिलती है।

प्रेरणा Summary In Hindi

प्रेरणा Summary In Hindi

Prerana” is a Sanskrit word that can be translated to “inspiration” or “motivation” in English. It is often used to describe the source of inspiration or the act of motivating oneself or others. “Prerana” refers to the concept of inspiration or motivation in various contexts, including personal development, education, and creativity. Read More Class 11 Hindi Summaries.

प्रेरणा Summary In Hindi

प्रेरणा कहानी का सारांश

‘प्रेरणा’ कहानी मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखित है। इस कहानी में मानवीय स्वभाव की विचित्रता और अनिश्चिता का वर्णन किया गया है। मनुष्य पर जब कोई दायित्व आ जाता है। तब उसके अन्दर से एक ऐसी प्रेरणा प्रस्फुटित होती है जो उसके जीवन की दिशा बदल देती है।

कथावाचक एक स्कूल में अध्यापक थे। उस स्कूल में सूर्यप्रकाश नाम का एक लड़का बड़ा उदंड था। उसने खुदाई फ़ौजदारों की एक फ़ौज बना ली थी और उसके आतंक से वे सारी पाठशाला पर शासन किया करता था। मुख्याध्यापक से लेकर स्कूल के अर्दली तथा चपड़ासी तक उससे थर-थर काँपते थे। एक दिन तो उसने कमाल ही कर दिया। स्कूल में इंस्पैक्टर साहब आने वाले थे। मुख्याध्यापक ने सब लड़कों को आधा घण्टा पहले आने का आदेश दिया। किन्तु ग्यारह बजे तक कोई भी छात्र स्कूल नहीं आया। सूर्यप्रकाश ने उन सबको रोक रखा था, पर पूछने पर किसी ने भी उसका नाम नहीं लिया। परीक्षा में वह कथावाचक की असाधारण देखभाल के कारण अच्छे अंक प्राप्त कर सका। उसकी शरारतें देखकर लेखक को लगा कि एक दिन वह जेल जाएगा या पागलखाने में।

लेखक का उस स्कूल से तबादला हो गया। फिर वह इंग्लैण्ड पढ़ने के लिए चला गया। तीन साल बाद वहाँ से लौटा तो एक कॉलेज का प्रिंसीपल बना दिया गया। उसका शिक्षा प्रणाली को लेकर मंत्री महोदय से झगड़ा हो गया। परिणामस्वरूप उन्होंने उसे पदच्युत कर दिया। तब लेखक ने किसी गाँव में आकर एक छोटी-सी पाठशाला खोली। एक दिन वह अपनी कक्षा को पढ़ा रहा था कि पाठशाला के पास जिले के डिप्टी कमिश्नर की कार आकर रुकी। कथावाचक ने झेंपते हुए उनसे हाथ मिलाने के लिए हाथ आगे बढ़ाया तो डिप्टी कमिश्नर ने उसके पैरों की ओर झुककर अपना सिर उन पर रख दिया। डिप्टी कमिश्नर ने बताया कि उसका नाम सूर्यप्रकाश है। उसने बताया कि आज वह जो कुछ है उन्हीं के आशीर्वाद का परिणाम है।

सूर्यप्रकाश ने अपनी राम कहानी सुनाते हुए कहा कि किस तरह उसने अपने ऊपर अपने छोटे भाई की ज़िम्मेदारी ली और शरारती लड़के से एक कर्मठ और जिम्मेवार व्यक्ति बन गया। उसने अपने छोटे भाई मोहन के बीमार होने पर बहुत सेवा की, किन्तु उसे बचा न सका। छोटे भाई की पवित्र आत्मा ही उसकी प्रेरणा बन गई और वह कठिन से कठिन परीक्षाओं में भी सफल होता गया। उस दिन से लेखक कई बार सूर्यप्रकाश से मिले। वह अब भी मोहन को अपना इष्टदेव समझता है। मानव प्रकृति का यह एक ऐसा रहस्य है जिसे लेखक आज तक नहीं समझ पाया है।

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पल्लवन Summary in Hindi

कनुप्रिया” हिन्दी साहित्य के आधुनिक काल की एक प्रसिद्ध कृति है। यह एक प्रेम कथा है, जिसमें राधा और कृष्ण के प्रेम को एक नये दृष्टिकोण से प्रस्तुत किया गया है। इस कृति में राधा की नायिका के रूप में एक नई पहचान स्थापित की गई है। राधा को एक मात्र प्रेमिका के रूप में नहीं, बल्कि एक स्वतंत्र और आत्मनिर्भर नारी के रूप में चित्रित किया गया है।

पल्लवन Summary in Hindi

पल्लवन लेखक का परिचय

पल्लवन लेखक का नाम :
डॉ. दयानंद तिवारी। (जन्म 1 अक्तूबर 1962.)

पल्लवन प्रमुख कृतियाँ :
‘साहित्य का समाजशास्त्र’, ‘समकालीन हिंदी कहानी – विविध विमर्श’, ‘चित्रा मुद्गल के कथासाहित्य का समाजशास्त्र’, ‘हिंदी व्याकरण’, “हिंदी कहानी के विविध आयाम’ आदि। विशेषता समाजशास्त्री तथा प्रतिबद्ध साहित्यकार। महाविद्यालयीन समस्याओं के प्रति जागरूक। संप्रेषणीय एवं प्रभावोत्पादक भाषा। विधा : एकांकी। यह नाटक का एक प्रकार है।

पल्लवन Summary in Hindi 1

पल्लवन विषय प्रवेश :
साहित्य शास्त्र में पल्लवन लेखन उत्तम साहित्यकार का लक्षण माना जाता है। पल्लवन अर्थात किसी लोकोक्ति, उद्धरण, सूक्ति आदि का विस्तृत वर्णन। प्रस्तुत पाठ में पल्लवन लेखन के विविध अंगों और नियमों को स्पष्ट करते हुए व्यावहारिक हिंदी के विभिन्न क्षेत्रों में उसकी उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया है।

पल्लवन पाठ का सार

बारहवीं कक्षा की फाइनल परीक्षाएँ निकट हैं। हिंदी के अध्यापक विद्यार्थियों को पाठ्यक्रम का पुनरावलोकन करा रहे हैं। एक विद्यार्थिनी के पूछने पर वह पल्लवन के विषय में विस्तार से समझाते हैं।

पल्लवन का अर्थ है फैलाव या विस्तार। जब किसी शब्द, सूक्ति, उद्धरण, लोकोक्ति गद्य, काव्य पंक्ति आदि का अर्थ स्पष्ट करते हुए दृष्टांतों, उदाहरणों द्वारा उसका विस्तार किया जाता है, तो उसे पल्लवन कहा जाता है। विस्तार शब्द के कारण पल्लवन को निबंध नहीं समझा जाना चाहिए।

निबंध और पल्लवन में अंतर होता है। जहाँ निबंध में किसी विचार को विस्तार से लिखने के लिए कल्पना, प्रतिभा और मौलिकता का सहारा लिया जाता है, वहीं पल्लवन में विषय का विस्तार एक निश्चित सीमा के अंतर्गत ही किया जाता है। पल्लवन की कुछ विशेषताएँ और नियम होते हैं।

पल्लवन के लिए भाषा के ज्ञान के साथ-साथ विश्लेषण, संश्लेषण, तार्किक क्षमता, अभिव्यक्तिगत कौशल की आवश्यकता भी होती है। पल्लवन में भाव विस्तार के साथ चिंतन का भी स्थान होता है। प्रथम दृष्टि में किसी सूक्ति आदि का सामान्य अर्थ ही समझ आता है। परंतु जैसे-जैसे उस सूक्ति विशेष को ध्यानपूर्वक और बार-बार पढ़ते हैं, तो उसमें निहित गूढ अर्थ स्पष्ट होने लगता है।

पल्लवन की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हुए अध्यापक स्पष्ट करते हैं कि वैज्ञानिक युग में पलने-बढ़ने के कारण आज की पीढ़ी लेखकों, कवियों, विचारकों आदि के मौलिक विचारों को समझने में अक्षम रहती है। ऐसे समय में पल्लवन हमारी सहायता करता है।

पल्लवन व्यक्तित्त्व निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। शारीरिक विकास के साथ-साथ मनुष्य का बौद्धिक विकास भी आवश्यक होता है। पल्लवन का महत्त्व केवल शिक्षा तथा साहित्य में ही नहीं है, बल्कि उत्कृष्ट वक्ता, पत्रकार, प्रोफेसर, नेता, वकील आदि को भी इस कला का ज्ञान होना चाहिए।

इतना ही नहीं, कहानी लेखन, संवाद लेखन, विज्ञापन, समाचार, राजनीति के साथ-साथ अन्य अनेक व्यवसायों में भी पल्लवन का प्रयोग होता है।

पल्लवन की विशेषताओं को इस प्रकार लिखा जा सकता है:

  • कल्पनाशीलता
  • मौलिकता
  • सर्जनात्मकता
  • प्रवाहमयता
  • भाषा-शैली
  • शब्द चयन
  • सहजता
  • स्पष्टता
  • क्रमबद्धता।

पल्लवन की दो शैलियाँ प्रचलित हैं –

  1. इसमें प्रथम वाक्य से ही लेखक विषय पर आ जाता है। इसमें लंबी-चौड़ी भूमिका बनाने की आवश्यकता नहीं होती। प्रारंभ से ही रोचक, उत्सुकतापूर्ण शृंखला में बँधे वाक्य लिखे जाते हैं।
  2. कुछ विद्वान मानते हैं कि प्रारंभ के दो-तीन वाक्यों में भूमिका बनानी चाहिए। फिर दस-बारह वाक्यों में विषय का विस्तार करे तथा अंत में दोतीन वाक्यों में समाप्ति करें।

पल्लवन की प्रक्रिया के निम्नलिखित सोपान हैं :

  1. विषय को भली-भाँति पढ़ना, उसके भाव को समझना, उस पर ध्यान केंद्रित करना, अर्थ स्पष्ट होने पर एक बार पुनः विचार करना।
  2. विषय की संक्षिप्त रूपरेखा बनाना, उसके पक्ष-विपक्ष में सोचना, फिर विपक्षी तर्कों को काटने के लिए तर्कसंगत विचार एकत्रित करना। उसके बाद असंगत विचारों को हटाकर तर्कसंगत विचारों को संयोजित करना।
  3. शब्द सीमा के अनुसार सरल और स्पष्ट भाषा में पल्लवन करना। लिखित रूप को पुनः ध्यानपूर्वक पढ़ना। पल्लवन विस्तार में और सदैव अन्य पुरुष में लिखा जाता है। पल्लवन में लेखक के मनोभावों का ही विस्तार और विश्लेषण किया जाता है।

पल्लवन के बिंदु (पाठ्यपुस्तक पृष्ठ क्र. 84)

  • पल्लवन में सूक्ति, उक्ति, पंक्ति या काव्यांश का विस्तार किया जाता है।
  • पल्लवन के लिए दिए गए वाक्य सामान्य अर्थ वाले नहीं होते।
  • पल्लवन में अन्य उक्ति का विस्तार नहीं जोड़ना चाहिए।
  • क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग न करें।
  • पल्लवन करते समय अर्थों, भावों को एकसूत्र में बाँधना आवश्यक है।
  • विस्तार प्रक्रिया अलग-अलग दृष्टिकोण से प्रस्तुत करनी चाहिए।
  • पल्लवन में भावों-विचारों को अभिव्यक्त करने का उचित क्रम हो।
  • वाक्य छोटे-छोटे हों जो अर्थ स्पष्ट करें।
  • भाषा का सरल, स्पष्ट और मौलिक होना अनिवार्य है।
  • पल्लवन में आलोचना तथा टीका-टिप्पणी के लिए स्थान नहीं होता।

पल्लवन

(1) नर हो, न निराश करो मन को।

मनुष्य संसार का सबसे अधिक गुणवान तथा बुद्धिशील प्राणी है। वह अपने बुद्धि कौशल तथा कल्पनाशीलता के बल पर एक से एक महान कार्य करता रहा है। शांति, सद्भाव, समानता की स्थापना के लिए मनुष्य सदैव प्रयासरत रहा, क्योंकि मनुष्य विधाता की सर्वोत्कृष्ट और सर्वाधिक गुणसंपन्न कृति है।

अतः उसे अपने जीवन में किसी भी परिस्थिति में निराश नहीं होना चाहिए। जीवन में सुख और दुख, लाभ और हानि, सफलता और असफलता उसी प्रकार हैं, जैसे सिक्के के दो पहलू। संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं है, जिसने अपने पूरे जीवन में कभी असफलता का मुँह न देखा हो।

हमें असफलताओं से घबराकर, हताश होकर नहीं बैठ जाना चाहिए। अगर मन ही पराजित हो गया तो वह इस धरा को स्वर्ग समान कैसे बना पाएगा। मनुष्य का विवेक, उसका मनोबल ही तो है, जो उसे हर समय कर्मरत रहने की, श्रेष्ठ से श्रेष्ठतर करने की प्रेरणा दिया करता है।

(2) अविवेक आपदाओं का घर है।

विवेक, बुद्धि और ज्ञान मानव की बौद्धिक संपदा है। मनुष्य जब कोई निर्णय लेता है तो उसे ऐसी विवेक शक्ति की आवश्यकता होती है, जो उसे उचित और अनुचित के बीच का भेद बता सके। बिना अच्छी तरह विचारे किए गए कार्य कष्टदायक होते हैं।

किसी भी मनुष्य की सफलता का श्रेय उसके विवेक को ही जाता है। किस समय कौन-सा निर्णय लिया गया, इस पर हमारा भविष्य बहुत कुछ निर्भर करता है। हमें सोच-विचारकर ही कोई कार्य करना चाहिए। बिना विचार किया गया कार्य पश्चाताप का कारण बनता है।

इसलिए हमें जो भी कहना है, उस पर मनन करें, चिंतन करें। जो कुछ भी कहें, उसे सोच-समझकर विवेक की कसौटी पर कसकर ही कहें। अविवेकी मनुष्य मूर्खतापूर्ण कार्य करता है और अपने जीवन को आपत्तियों से भर लेता है। अगर कोई हितैषी उसे आपत्तियों से बचाते हुए उचित मार्ग पर चलने की परामर्श भी देता है, तो वह हितैषी उसे परम शत्रु प्रतीत होता है।

(3) सेवा तीर्थयात्रा से बढ़कर है।

सेवा से बढ़कर कोई दूसरा धर्म नहीं है। इस तथ्य को सभी जानते हैं। लेकिन लोग सेवा को भूलकर तीर्थयात्रा के लिए यह सोचकर निकल पड़ते हैं कि उन्हें मोक्ष मिलेगा। लोग भूल जाते हैं कि सेवा का भाव ही संपूर्ण मानवता को चिरकाल तक सुरक्षित कर सकेगा।

सेवा समाज के प्रति कृतज्ञ लोगों का आभूषण है। मानव सेवा एवं प्राणिमात्र की सेवा संपूर्ण तीर्थयात्राओं का फल देने वाली होती है। ऐसे व्यक्ति हमारे आस-पास ही मिल जाते हैं, जिन्हें सेवा की आवश्यकता होती है। तीर्थयात्रा करने का फल कब मिलेगा, कैसा होगा? कोई नहीं जानता।

परंतु सेवा सदा शुभ फल ही देती है। ‘सेवा करे सो मेवा पाए।’ अतः हमें सेवा धर्म अपनाना चाहिए।

(4) जो तोको काँटा बुवै, ताहि बोइ तू फूल।

संसार का यह चलन है कि आपके शुभचिंतक कम मिलेंगे, अहित करने वाले या बुरा सोचने वाले अधिक। ऐसे लोगों के प्रति क्रोध की भावना होना स्वाभाविक है। साधारण मनुष्य यही करते भी हैं, परंतु अहित करने वाले का हित सोचना, काँटे बिछाने वाले के लिए फूल बिछाना, मारने वाले को क्षमा करना महान मानवीय गुण है। हमारी संस्कृति प्रारंभ से ही अहिंसा प्रधान रही है। सबके प्रति सद्भावना रखना एक प्रकार की साधना है।

प्रकृति भी हमें यही शिक्षा प्रदान करती है। वृक्ष पत्थर मारने वाले को फल देते हैं। सरसों निष्पीड़न करने वालों को तेल देती है। पत्थर पर घिसा जाने के बाद चंदन सुगंध और शीतलता देता है। जब ये पदार्थ निर्जीव होते हुए भी अपकार करने वालों का उपकार करते हैं तो मनुष्य को तो विधाता ने स्वभाव से ही परोपकारी बनाया है।

शत्रु को मित्र बनाने, विरोधियों का हृदय परिवर्तन करके उन्हें अनुकूल बनाने का यही सर्वोत्तम और स्थायी उपचार है कि हम उत्पीड़क को क्षमा करें। जो हमारा बुरा करता है, उसका भला करें। उसके मार्ग के कँटक दूर करके वहाँ फूल बिछा दें। भला करने वाला, फूल बिछाने वाला सदा लाभ में ही रहता है। काँटा बिछाने वाला स्वयं ही उसमें उलझकर घायल हो सकता है। अतः हमें अपकार करने वाले का भला करना चाहिए।

Conclusion

पल्लवन एक महत्वपूर्ण साहित्यिक विधा है, जो हमें मूल भावों को अधिक गहराई से समझने में मदद करती है। पल्लवन के माध्यम से, हम मूल भावों को नए दृष्टिकोण से देख सकते हैं और उनसे नई व्याख्याएं निकाल सकते हैं।