कार्निवल का चक्कर Summary In Hindi

कार्निवल का चक्कर Summary In Hindi

“कार्निवल का चक्कर” एक हिंदी कहानी है जो निकोलो मचियावेल्ली द्वारा लिखी गई है। इस कहानी में हमें मुख्य पात्र जो एक साधू के रूप में प्रस्तुत होते हैं, के अद्वितीय चरित्र के साथ एक रोचक और मनोरंजक कार्निवल की यात्रा का साक्षात्कार होता है। इस कहानी में संगीत, कला, और जीवन के असली मायने प्रकट होते हैं जो हमें वास्तविक खुशियों की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाते हैं। Read More Class 7 Hindi Summaries.

कार्निवल का चक्कर Summary In Hindi

कार्निवल का चक्कर पाठ का सार

‘कार्निवल का चक्कर’ लेखक का बढ़ती हुई महंगाई पर एक व्यंग्यात्मक लेख है। लेखक नाश्ता करने के बाद अखबार पढ़ने बैठा ही था कि उसकी पत्नी ने उसे छुआ तो वह चौंक गया। पत्नी ने उसे बच्चों सहित कार्निवल घूमने के लिए कहा। वह मान गया परन्तु सोचने लगा कि आज के ज़माने में दाल-रोटी चलाना मुश्किल हो रहा है और उस ने कार्निवल घूमने के लिए हाँ कर दी है। उसे वेतन मिले अभी दो-चार दिन ही हुए थे; इसलिए जेब गर्म थी तथा दूध, धोबी, चौकीदार आदि का भुगतान अभी किया नहीं था।

कार्निवल चलने के लिए लेखक ने स्कूटर को हिलाकर देखा तो उसमें पेट्रोल था। चुन्नू-मुन्नू स्कूटर साफ करने के लिए कपड़ा ले आए। किक मारने पर भी स्कूटर नहीं चला। जब बच्चों ने उसे धक्का लगाया तो वह चल पड़ा। बच्चों और पत्नी को स्कूटर पर बैठा कर लेखक बजरंगबली का नाम लेकर कार्निवल की ओर पवन वेग से स्कूटर को उड़ाता हुआ चल पड़ा। वहाँ स्कूटर स्टैंड वाले को दस रुपए और कार्निवल में प्रवेश के लिए प्रति व्यक्ति बीस रुपए की दर से सौ रुपए देने पड़े।

कार्निवल में प्रवेश करते ही उनके बच्चों ने बर्गर-गोलगप्पा तथा पत्नी ने गोलगप्पे खाने के लिए कहा तो लेखक को हाँ करनी पड़ी परन्तु पाँच रुपए की एक….. सुन कर गोलगप्पे का जल लेखक की श्वास नली में अटक गया और गोलगप्पे वाले को पिचहत्तर की बजाय पचास रुपए देकर आगे बढ़ गए। आगे चल कर बच्चे झूले पर सवारी करने के लिए कहने लगे तो पाँच के चार सौ रुपए सुनकर लेखक धम्म से नीचे गिर गए तो लोगों ने दौरा पड़ने, मिर्गी आने, हृदयघात की बात कही तो लेखक ने कांपते हाथों से अपने परिवार की ओर संकेत किया। लोग उन्हें उठा कर वहाँ पटक कर चले गए।

पत्नी ने पूछा कि क्या हुआ तो इन्होंने भीड़ के दम घुटने की बात कह कर खुले में चलने के लिए कहा। बेटी ने सचिन वाला कोल्ड ड्रिंक पीने की जिद की तो उसे डांट दिया और घर जाकर नींबू-पानी पीने के लिए कहा। पत्नी ने टिक्की खाने के लिए कहा तो पाँच प्लेट टिक्कियाँ खाईं और इन का भुगतान दो सौ पचास रुपए करते हुए घबरा गए। मुन्नू कुछ कहने लगा तो उसे घर चल कर बादाम नींबू का शीतल पेय पीने के लिए कहा और सोचने लगे नींबू दौ सौ रुपए किलो, बादाम पाँच सौ रुपए बच्चों से वायदा बेकार ही किया।

Conclusion:

“कार्निवल का चक्कर” का संग्रहण हमें यह सिखाता है कि जीवन की खोज में हमें अपनी प्राथमिकताओं को खोना नहीं चाहिए, बल्कि हमें अद्वितीय अनुभवों की ओर बढ़ना चाहिए। साधू के रूप में प्रस्तुत होने के बावजूद, मुख्य पात्र ने जीवन के आनंदों और रंगमंच की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जो हमें अपने आसपास की खुशियों को महसूस करने के लिए उत्तेजना देती हैं। यह कहानी एक आनंदमय और अद्वितीय जीवन के महत्व को प्रमोट करती है।

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत, रांगेय राघव द्वारा लिखित एक जीवनीपरक उपन्यास है, जो भारतेन्दु हरिश्चंद्र के जीवन पर आधारित है। यह उपन्यास भारतेन्दु के बचपन से लेकर उनके निधन तक के जीवन का वर्णन करता है।

भारती का सपूत Summary in Hindi

भारती का सपूत लेखक परिचय :

रांगेय राघव जी का जन्म 17 जनवरी 1923 को श्री रंगाचार्य के घर उत्तर प्रदेश में हुआ। आपकी पूर्ण शिक्षा आगरा में हुई। वहीं से आपने पी.एच.डी की उपाधि प्राप्त की। आंचलिक ऐतिहासिक तथा जीवनीपरक उपन्यास लिखने वाले रांगेय राघव जी के उपन्यासों में भारतीय समाज का यथार्थ (actual) चित्रण प्राप्त है। आपने साहित्य की लगभग सभी विधाओं में सृजनात्मक (creative) लेखन करके हिंदी साहित्य को समृद्धि (prosperity) प्रदान की है।

भारती का सपूत Summary in Hindi 1

आपने मातृभाषा हिंदी से ही देशवासियों के मन में देश के प्रति निष्ठा और स्वतंत्रता का संकल्प जगाया। सबसे पहले कविता के क्षेत्र में कदम रखा पर महानता मिली गद्य लेखक के रूप में। 1946 में प्रकाशित ‘घरौंदा’ उपन्यास के जरिए आप प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए।

1962 में आपको कैंसर रोग पीड़ित बताया गया। उसी वर्ष 12 सिंतबर को आप मुंबई में देह त्यागी। पुरस्कार : हिंदुस्तान अकादमी, डालमिया पुरस्कार, मरणोपरांत (1966) महात्मा गांधी पुरस्कार।

भारती का सपूत प्रमख कतियाँ :

उपन्यास – विषाद मठ, उबाल, राह न रुकी, बारी बरणा खोल दो, देवकी का बेटा, रत्ना की बात, भारती का सपूत, यशोधरा जीत गई, घरौंदा, लोई का ताना, कब तक पुकारूँ, राई और पर्वत, आखिरी आवाज आदि। कहानी संग्रह – पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कंबल, नारी का विक्षोभ, देवदासी, जाति और पेशा आदि

भारती का सपूत विधा का परिचय :

‘उपन्यास’ वह गद्य कथानक है जिस के द्वारा जीवन तथा समाज की व्यापक व्याख्या की जा सकती है। उपन्यास को आधुनिक युग की देन कहना अधिक समुचित होगा। साहित्य में गद्य का प्रयोग जीवन के यथार्थ चित्रण का द्योतक है। साधारण बोलचाल की भाषा द्वारा लेखक के लिए अपने पात्रों, उनकी समस्याओं तथा उनके जीवन की व्यापक पृष्ठभूमि से प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करना आसान हो गया है।

उपन्यास हमारे जीवन का प्रतिबिंब होता है, जिसको प्रस्तुत करने में कल्पना का प्रयोग आवश्यक है। मानव जीवन का सजीव चित्रण उपन्यास है। उपन्यास महान सत्यों और नैतिक आदर्शों का एक अत्यंत मूल्यवान साधन है।

भारती का सपूत विषय प्रवेश :

जीवन में अनेक ऐसी महान विभूतियाँ होती है, जिनका स्मरण करके हम आने वाली पीढ़ी के सामने उनका आदर्श रख सकते हैं। प्रस्तुत जीवनपरक उपन्यास में हिंदी गद्य के जनक तथा पिता भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जन्मदिन के अवसर पर अध्यापक रत्नहास ने लोगों को निमंत्रित करके एक तरफ उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ निमंत्रित लोगों के सामने भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं को उजागर किया।

भारतीय भाषा और संस्कृति, अंग्रेजी स्कूलों का दुष्परिणाम, हिंदी अंग्रेजी पाठशाला निर्माण, बचपन से ही साहित्य के प्रति रुझान, पिता का आदर्श, आदि कार्यों का लेखा-जोखा रखकर श्रद्धा प्रकट करना और जीवन में प्रेरणा लेना पाठ का उद्देश्य है। केवल 34 वर्ष 4 महीने जिंदगी जीने वाले भारतेंदु जी का जीवन आदर्शवत (idealizing) है।

भारती का सपूत पाठ का परिचय :

‘भारती का सपूत’ रांगेय राघव लिखित जीवनीपरक उपन्यास का अंश है। प्रस्तुत जीवनी परक उपन्यास में हिंदी गद्य भाषा के जनक भारतेंदु हरिश्चंद्र जी के जीवन को आधार बनाकर, उनके जीवन के कुछ पहलुओं को उजागर किया गया है। बचपन से ही साहित्य एवं शिक्षा के प्रति रुझान ने भारतेंदु जी को हिंदी साहित्य जगत का देदीप्यमान इंदु अर्थात चंद्रमा बना दिया।

अंग्रेजों की नीतियाँ, सामाजिक कुरीतियाँ, एवं अशिक्षा के खिलाफ भारतेंदु जी द्वारा जगाई अलख को उपन्यासकार ने अपनी लेखनी से और भी प्रज्वलित किया है।

भारती का सपूत सारांश :

‘भारती का सपूत’ जीवनीपरक उपन्यास है। इसमें भारतेंदु जी के जीवन के अनेक पहलुओं का वर्णन किया है। भारतेंदु जी का जीवन आने वाली पीढ़ी के लिए एक प्रेरणा है। इसलिए अध्यापक रत्नहार जी ने भारतेंदु जी के जन्मदिन के अवसर पर लोगों को बुलाकर उनके प्रति श्रद्धा जताई तो दूसरी तरफ उनके जीवन का बखान करके लोगों में प्रेरणा निर्माण की।

भारतेंदु जी के पिता कवि थे, उसका असर बचपन में ही भारतेंदु जी पर पड़ा और 5 वर्ष की उम्र में ही भारतेंदु जी कविता लिखने लगे। उनका जन्म उच्च कुल में हुआ था, जिसका प्रभाव समाज पर था। परंतु भारतेंदु जी कुल के कारण महान नहीं बने बल्कि उनके कार्य से महान बने थे।

भारतेंदु जी की शादी 13 वर्ष की उम्र में मन्नो देवी से हुई। 17 वर्ष की उम्र में उन्होंने नौजवानों का संघ बनाया था। उसके बाद वाद-विवाद सभा का निर्माण किया। इस सभा का उद्देश्य भाषा और समाज का सुधार करना था। 18 वर्ष की आयु में बनारस इन्स्टिट्युट और ब्रह्मामृत वार्षिक सभा के प्रधान सहायक रहे। कविवचन-सुधा नामक पत्रिका का निर्माण किया। होम्योपैथिक चिकित्सालय निर्माण करके लोगों को मुफ्त इलाज किया और दवाएँ दीं।

भारतेंदु जी के काल में अंग्रेजी स्कूल थे, जिसका परिणाम – लोग काले साहेब बनकर अपनों पर ही हुकूमत करते थे इसलिए भारतेंदु जी ने हिंदी तथा अंग्रेजी पाठशालाओं का निर्माण किया, जिससे भारतीय संस्कृति तथा भाषा का विकास हो सकें।

केवल 34 वर्ष 4 महीने की आयु में भारतेंदु जी आखरी दिनों में बिस्तर पर पड़े थे, परंतु फिर भी देश के प्रति उनकी निष्ठा बनी थी। उन्होंने साहित्य, देश, धर्म, दारिद्र्यमोचन, कला और अपमानित नारी के उद्धार के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था।

Conclusion

भारती का सपूत एक महत्वपूर्ण उपन्यास है, जो हमें भारतेन्दु के जीवन और कार्यों से परिचित कराता है। यह उपन्यास हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में कुछ बड़ा कर दिखाएं।

मास्टर ब्लास्टर : सचिन तेंदुलकर Summary In Hindi

मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर Summary In Hindi

“मास्टर ब्लास्टर: सचिन तेंदुलकर” एक आत्मकथा है जिसमें भारतीय क्रिकेट के दिग्गज सचिन तेंदुलकर के जीवन और क्रिकेट करियर की रोचक कहानी है। यह किताब उनके बचपन से लेकर उनकी ब्लॉकबस्टर क्रिकेट करियर के विभिन्न पहलुओं को छूने का प्रयास करती है और उनके महत्वपूर्ण संघर्षों और सफलता की कहानी को साझा करती है। यह किताब एक प्रेरणास्पद जीवन के उदाहरण के रूप में काम करती है और उन्होंने क्रिकेट के मैदान में अपनी अद्वितीय प्रतिबद्धता और उत्कृष्टता के साथ कैसे रचा। Read More Class 7 Hindi Summaries.

मास्टर ब्लास्टर : सचिन तेंदुलकर Summary In Hindi

मास्टर ब्लास्टर : सचिन तेंदुलकर पाठ का सार

‘होनहार बिरवान के होत चीकने पात’ उक्ति को पूरी तरह सिद्ध करने वाले मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अढ़ाई वर्ष की आयु में ही मुगरी का बल्ला बना कर प्लास्टिक की गेंद से अपनी नानी और बड़े भाई अजित के साथ खेलते थे। उनकी नानी लक्ष्मी बाई गिजे ने इन्हें इन के तीसरे जन्मदिन पर गेंद-बल्ला उपहार में दिया तो रोज़ क्रिकेट खेलना उनका नियम ही बन गया था। इनका पूरा नाम सचिन रमेश तेंदुलकर, माता का नाम रजनी तेंदुलकर तथा पिता का नाम रमेश तेंदुलकर है। इनका जन्म 24 अप्रैल, सन् 1973 ई० को राजापुर, मुंबई में हुआ था। इनके माता-पिता नौकरी करते थे, इसलिए ग्यारह वर्ष तक इनका तथा इनके भाई अजीत, नितिन तथा बहन सविता का पालन-पोषण इनकी नानी ने किया था। सन् 1995 ई० में इनका विवाह अंजली से हुआ। इनकी पुत्री सारा तथा पुत्र अर्जुन है। सचिन अपनी नानी को अपना क्रिकेट और जीवन गुरु मानते हैं।

शारदाश्रम विद्या मंदिर में पढ़ते हुए इन्होंने क्रिकेट खेलना प्रारंभ किया। कोच रमाकांत अचरेकर इन्हें घण्टों अभ्यास कराते थे और स्टम्प्स पर सिक्का रखकर गेंदबाजों को कहते थे, जो सचिन को आऊट करेगा, सिक्का उसे मिलेगा तथा आऊट नहीं होने पर सिक्का सचिन का होगा। सचिन के पास ऐसे जमा किए हुए तेरह सिक्के हैं। सचिन ने पहला प्रथम श्रेणी मैच सन् 1988 ई० में चौदह वर्ष की आयु में मुंबई के लिए विनोद काम्बली के साथ मिलकर खेला और दोनों ने मिलकर 664 दौड़ों की अविजित पारी खेली, जिसे देखकर विरोधी टीम ने आगे खेलने से मना कर दिया था।

सचिन ने अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट सन् 1989 ई० में पाकिस्तान के विरुद्ध कराची में खेला था। अब तक वे अपने नाम अनेक रिकार्ड कर चुके हैं। वे बाएँ हाथ से लिखते और दाएँ हाथ से खेलते हैं। वे ऑफ स्पिन, लेग स्पिन, गुगली गेंदबाजी भी करते हैं। वे भारतीय सैनिकों को अपना आदर्श मान कर संघर्ष करना सीखे हैं। वे बहुत विनम्र, धैर्यवान, संयमी एवं विवेकी हैं। वे अपनालय के बच्चों का पालन-पोषण करते हैं तथा एक रेस्टोरेंट के मालिक भी हैं। उन्होंने 2 अप्रैल, सन् 2011 ई० को विश्वकप-2011 जिताया। इन्हें सन् 1994 में अर्जुन पुरस्कार, राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार, सन् 1999 में पद्मश्री और सन् 2008 में पद्म विभूषण सम्मान दिया गया था।

Conclusion:

“मास्टर ब्लास्टर: सचिन तेंदुलकर” का संग्रहण दिखाता है कि सफलता के लिए मेहनत, समर्पण, और पूरी ईमानदारी के साथ काम करना कितना महत्वपूर्ण है। यह एक निरंतर प्रेरणा स्रोत है जो हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है।

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

महाराष्ट्र कक्षा 11 का सिलेबस एक छात्र की शैक्षिक यात्रा में महत्वपूर्ण पड़ा है। यह चरण माध्यमिक शिक्षा से उच्च माध्यमिक शिक्षा की ओर का संकेत देता है। पाठ्यक्रम विभिन्न विषयों में मजबूत नींव प्रदान करने और छात्रों को 12वीं बोर्ड परीक्षा और उसके परे के चुनौतियों के लिए तैयार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।

Maharashtra 11th Class Summary In Hindi

सम्ग्र रूप में, महाराष्ट्र कक्षा 11 का पाठ्यक्रम छात्रों को वो ज्ञान और कौशल प्रदान करने का उद्देश्य है जो उन्हें शिक्षा में उत्कृष्टता हासिल करने और भविष्य के करियर आकांक्षाओं को पूरा करने की आवश्यकता है। यह उच्च शिक्षा और एक उम्मीदवार भविष्य की ओर का एक कदम है

धूल का फूल Summary In Hindi

धूल का फूल Summary In Hindi

“धूल का फूल” एक हिंदी उपन्यास है जो रजिंदर सिंह बेदी द्वारा लिखा गया है। धूल का फूल कहानी में एक सामाजिक और आर्थिक उपेक्षित गरीब लड़की का सफलता की ओर का संघर्ष और उसके व्यक्तिगत विकास का वर्णन है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

धूल का फूल Summary

धूल का फूल पाठ का सारांश

‘धूल का फूल’ एक ऐसे खेत-मज़दूर गरीब पिता के पुत्र की कहानी है, जो अपने परिश्रम तथा इच्छा शक्ति के बल पर पढ़-लिखकर कलक्टर बन जाता है। ऊबड़-खाबड़ सड़क पर गाड़ी चलाते हुए गुरशरण सोच रहा था कि न मालूम क्यों साहब इधर दौरे पर आए हैं ? जब उसने साहब से पूछा कि अभी और कितनी दूर जाना है तो साहब ने उसे चलते रहने को कहा।

साहब का मन बहुत प्रसन्न था। वे बरसों बाद अपने गाँव जा रहे थे। वे बीस-पच्चीस साल पहले के पंच जी के खेत, दीनू ग्वाले की गाय-भैंसें, सब्बू कुम्हार के चाक आदि की बातें सोच कर भाव-विभोर हो रहे थे। उन्हें गन्ने का रस पीना, गर्म गुड़ खाना, ऊधम मचाना, ककड़ियाँ-खरबूजे खाना, पाठशाला में आदित्य मास्टर जी से पढ़ना आदि याद आ रहा था। उसके पिता दूसरों के खेतों में मजदूरी करते थे तथा माँ के साथ वह खेतों पर खाना ले जाता था। उसके पिता को शहर में चपरासी की नौकरी मिली तो सारा परिवार गाँव से शहर आ गया। जहाँ आकर गाड़ी में बैठे अफसर को देखकर उसका मन भी उन जैसा बनने की इच्छा करता और वह सोचता कि जब लाल बहादुर शास्त्री, लिंकन, एडीसन जैसे बड़े बन सकते हैं, तो वह क्यों नहीं?

सरकारी स्कूल दूर थे फिर भी वह पढ़ता गया क्योंकि उसे विश्वास था कि बड़े बनने की कुंजी विद्या ही है और विद्याधन मेहनत के बिना नहीं मिलता। वह कर्म को पूजा मानने लगा। वह शरण को गाड़ी धीरे चलाने के लिए कहता है और शरण से यह जान कर कि उसका लड़का तो पढ़ने जाता है परन्तु वह अपनी लड़की को स्कूल नहीं भेजता तो उसे समझाता है कि लड़की को भी पढ़ाओ क्योंकि लड़कियाँ घर का श्रृंगार होती हैं, वे ही परिवार का आधार हैं। उसने गाड़ी की खिड़की से मुटियारों को सिर पर बोझ लेकर जाते, खेतों में कम्बाइन चलाते तथा स्त्रियों-बच्चों को झोला लिए अनाज की बालियाँ चुनते देखा तो सोचने लगा कि आजादी के इतने सालों बाद भी गरीब की वही दशा है जो उस के ज़माने में थी। तभी उसे एक बुजुर्ग दिखाई दिए। उस ने गाड़ी रुकवाई और उनके पैर स्पर्श किए। वे चाचा चरण सिंह थे।

उन्होंने उसे नहीं पहचाना तो उसने स्वयं ही अपना परिचय दिया कि वह उनका प्रशांत है। चाचा को भी याद आया नसीब का पुत्र प्रशांत। वह आज यहाँ गाँव के विद्यालय का दर्जा बढ़ाने का आदेश लेकर आया था। पाठशाला रंगोली, रंग-बिरंगी झंडियों से सजी हुई थी। पुष्प-गुच्छों से उसका स्वागत हुआ। अपने प्रिय अध्यापक आदित्य प्रकाश के पैरों को स्पर्श करने के लिए जैसे ही प्रशांत झुका कि उन्होंने उसे बाँहों में भरकर गले लगा लिया और वे फूले नहीं समा रहे थे कि उनका गरीब प्रशांत कलक्टर प्रशांत बन गया है। वही सरकार की ओर से पाठशाला का दर्जा बढ़ाने का आदेश लाया है।

Conclusion:

“धूल का फूल” का संग्रहण यह दिखाता है कि व्यक्तिगत साहस और संघर्ष के माध्यम से किसी भी स्थिति से उच्चतम सफलता हासिल की जा सकती है। धूल का फूल के कलाकार कहानी समाज में विस्तार, सामाजिक न्याय, और आत्म-समर्पण के महत्व को प्रमोट करती है।

कामना Summary In Hindi

कामना Summary In Hindi

“कामना” एक हिंदी कहानी है जिसमें प्रमुख चरण नामक एक गरीब लड़के की कहानी है, जो अपनी माता-पिता की सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष करता है। यह कहानी सपनों की पुरी करने के लिए किए गए प्रयासों और संघर्षों की दर्दनाक और प्रेरणादायक यात्रा का वर्णन करती है। Read More Class 7 Hindi Summaries.

कामना Summary In Hindi

कामना कविता का सार

‘कामना’ शब्द का अर्थ है-‘इच्छा’। कवि परमात्मा से प्रार्थना करते हुए कहता है कि हे दयालु! आप मेरे हृदय में दया भर दो जिससे मैं दुखियों का सहारा बन सकूँ। हे प्रकाशमान! आप मुझे ज्ञान दो जिससे मैं गुणी और ज्ञानी बनकर सच्चा इन्सान बन कर मानवता की सेवा कर सकूँ। हे शक्तिशाली ! मुझे असीम शक्ति दो जिससे मैं दुष्टों को नष्ट करके दीनदुखियों का सहारा बनूँ तथा भारत माता के संतापों का भार दूर कर सकूँ। हे गुणों के भंडार! मुझ में अच्छे गुणों को भर दो जिससे मैं संसार में सुख रूपी सुगन्ध भर सकूँ तथा चिन्ताओं से परेशान लोगों को स्वतन्त्र और शान्त जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दे सकूँ।

Conclusion:

“कामना” का संग्रहण दिखाता है कि सपनों की प्राप्ति के लिए संघर्ष करना महत्वपूर्ण है, और समर्पण और मेहनत से आपके लक्ष्यों को पाने की क्षमता हो सकती है। इसके अलावा, यह दिखाता है कि सपनों का पालन करके एक व्यक्ति अपने जीवन को सफलता और संतुष्टि की दिशा में अग्रसर कर सकता है।

Vasanavikrithi Summary in Malayalam

Vasanavikrithi Summary in Malayalam

Vaikom Muhammad Basheer’s short story “Vasanavikrithi” (The Sale of a Spring) is a philosophical tale about the nature of time and the human condition. The Summary follows a young man named Kunju who is approached by a mysterious stranger who offers to buy his spring. Kunju initially refuses, but the stranger is persistent and eventually convinces him to sell.

After the sale is complete, Kunju realizes that he has made a mistake. He misses the spring and the joy that it brought him. He also realizes that he has sold a part of himself and that he is now less complete.

Vasanavikrithi Summary in Malayalam

ജീവിത രേഖ: 1860- ൽ തളിപ്പറമ്പ് വെരിഞ്ചല്ലൂർ ഗ്രാമത്തിൽ ജനിച്ചു. സെയ്ദാപ്പേട്ട കാർഷിക കോളേജിൽ ചേർന്ന് കൃഷിശാസ്ത്രത്തിൽ ബിരുദം. ശാസ്ത്രീയമായി കൃഷിയിലേർപ്പെട്ട ഒന്നാമത്തെ മലബാർ കർഷകനാണ് ഇദ്ദേഹം. 1912-ൽ ജന്മിമാരുടെ പ്രതിനിധിയായി മദിരാശി നിയമസഭയിൽ ഉണ്ടായിരുന്നു. 1914 നവംബർ 14- ന് ഹൃദയ സ്തംഭനം മൂലം മരണം.

Vasanavikrithi Summary in Malayalam 1

വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാർ (1861-1914) 
– മലയാളത്തിലെ ആദ്യത്തെ കഥാകൃത്ത് –

അമേരിക്കൻ സാഹിത്യനായകനായ മാർക്ക് ടെയിനോടാണ് മഹാ കവി ഉള്ളൂർ ‘മലയാളത്തിലെ ആദ്യത്തെ ചെറുകഥാകൃത്ത് വേങ്ങ യിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാരെ സാമ്യപ്പെടുത്തുന്നത്. പരിഹാസം കൈമുതലായിട്ടുള്ള പത്രപ്രവർത്തകനും, ഫലിതത്തിന്റെ മർമ്മം കണ്ടുപിടിച്ചയാളും, ഹാസ്യസാഹിത്യരചനയിൽ തൽപരനും ആയി രുന്നു വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാർ. ഒപ്പം നിരൂപണ ത്തിന്റെ മൂർച്ചയേറിയ ഭാഷയും

അദ്ദേഹത്തിന് വഴങ്ങിയിരുന്നു. ഗദ്യസാഹിത്യത്തിൽ ചെറുകഥ, നോവൽ ശാഖകളുടെ വളർച്ച തുടങ്ങിയ നൂറ്റാണ്ടിന്റെ മധ്യശതകങ്ങൾ കഴിഞ്ഞുള്ള കാല ഘട്ടത്തിൽ, മലയാളത്തിൽ കുത്തഴിഞ്ഞ ഒരു അവസ്ഥാവിശേ ഷമുണ്ടായിരുന്നു. മലയാള നോവലിന്റെ വഴിതെറ്റിയ പോക്കിൽ ക്ഷഭിതനായ അദ്ദേഹം ഹാസ്യരൂപേണ ‘പറങ്ങോടൻ പരിണയം’ എന്നൊരു നോവലിന്റെ ഒരു രൂപരേഖ സൃഷ്ടിക്കുകയുണ്ടായി.

ആദ്യത്തെ കുറച്ച് അധ്യായങ്ങൾ തിരിച്ച് എഴുതിയതിനുശേഷം പെട്ടെന്ന് പരിഹാസരൂപത്തിൽ അവസാനിപ്പിക്കുകയും ചെയ്തു. സമയം കൊല്ലാനും ജനങ്ങളെ ബുദ്ധിമുട്ടിക്കാനുമായി എഴുതി കൂട്ടുന്നവർക്ക് ഒരു പ്രഹരമായി വേങ്ങയിലിന്റെ ഈ നടപടി. എങ്ങനെ ആവരുത് നോവലെന്ന് ‘ആക്ഷേപഹാസ്യത്തിൽ വര ച്ചുവെക്കുകയായിരുന്നു വേങ്ങയിൽ ചെയ്തത്.

കുറിക്കുകൊ ള്ളുന്ന പരിഹാസ രൂപത്തിലാണ് അദ്ദേഹമത് ചെയ്തത്. ഒരു പ്രയോ ജനമില്ലാതെ, സമൂഹത്തിനോ, സ്വന്തം മനഃസാക്ഷിക്കുതന്നെയോ ഗുണവുമില്ലാതെ നോവലുകൾ പടച്ചുവിടുന്നവർക്കുള്ള ശക്ത മായ മുന്നറിയിപ്പായിരുന്നു അത്. ലക്ഷണംകെട്ട

നോവലുകളെ ചവറ്റുകൊട്ടയിലേക്ക് എറിയാൻ പരോക്ഷമായി അദ്ദേഹം ആഹ്വാനം ചെയ്യുകയായിരുന്നു. ചെറുകഥ യിൽ ഏറ്റവും ആവശ്യവും അനിവാര്യവും ആയ ഗുണം ഏകാഗ്രതയാണ്. ഒരൊറ്റ വികാരത്തിനു മാത്രമേ അവിടെ സ്ഥാനം നൽകാവൂ.

ഈ വികാരത്തെ വീണ്ടും, വീണ്ടും വളർത്തി വായനക്കാരനിലേക്ക്, ആസ്വാദകനിലേക്ക് അവന്റെ ആസ്വാദന മണ്ഡലങ്ങളിലേക്ക് എത്തിച്ച് രസപൂർണ്ണത വരുത്തുക എന്നത് കഥാകൃത്തിന്റെ ധർമ്മമാണ്. അതിന് തടസ്സം വരാതെ ശ്രദ്ധിക്ക ണം. ഒഴുക്ക് വളരെ പ്രധാനമാണ്. ഈ ഏകാഗ്രത യുടെ കുറവാണ് ആദ്യകാല നോവൽ, കഥാരചയിതാക്കളെ ഏറെ വലിച്ചത്.

കുറെ ഏറെ ഘടകങ്ങൾ തള്ളിക്കയറിവന്ന് കഥയുടെ ഘട നയെ താറുമാറാക്കുകയും, വായനക്കാരന്റെ രസനിഷ്പത്തി അസാ ധ്യമാക്കുകയും ചെയ്യുന്നു. കഥയെക്കുറിച്ചുള്ള, ചെറുകഥയെക്കുറിച്ചുള്ള ഈ സാമാന്യ നിയമങ്ങൾ ഏറെയും വേങ്ങയി ലിന് സ്വന്തമായിരുന്നു എന്ന് കാണുവാൻ കഴിയും. ചെറുകഥയെ വേങ്ങയിൽ ഒരിക്കലും കവിതയെപ്പോലെ പരിഗണിച്ചിരുന്നില്ല. കഥയുടെ

രചനാഭംഗിയെക്കുറിച്ചാണ് അദ്ദേഹം കുടുതലായും ശ്രദ്ധിച്ചത്. യഥാർത്ഥമായ ആശയഭംഗി കഥയ്ക്ക് ലഭിക്കണമെങ്കിൽ സാധാരണ ജീവിതാവസ്ഥകളെ കൂട്ടിച്ചേർക്ക ണമെന്ന അഭിപ്രായം അദ്ദേഹത്തിനുണ്ടായിരുന്നു. യുക്തിയുക്തമായും രസകരമായും കൂട്ടിയോജിപ്പിച്ചവ മനസ്സിനെ വിനോ ദിപ്പിക്കും.

വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാരുടെ കഥകൾ 
വാസനാ വികൃതി (1891) – വിദ്യാവിനോദിനി 
(മാസിക)
ദ്വാരക (1893) – വിദ്യാവിനോദിനി (മാസിക) 
മദിരാശിപ്പിത്തലാട്ടം (1910) – സരസ്വതി (മാസിക) 
പാതാളരാജാവ് – വിദ്യാവിനോദിനി (മാസിക)

ആമുഖം

19-ാം നൂറ്റാണ്ടിന്റെ അന്ത്യദശകങ്ങൾ മലയാളസാഹിത്യത്തെ പ്ര ത്യേകിച്ച് ഗദ്യസാഹിത്യത്തെ സംബന്ധിച്ച് ആശയക്കുഴപ്പങ്ങളുടെ ദശകമായിരുന്നു. പദ്യസാഹിത്യത്തെ സംബന്ധിച്ച് വ്യക്തവും, ശക്തവുമായ ഒരു സംസ്കൃതഭാഷാ സ്വാധീനം ഉള്ളതുകൊണ്ട് അവിടെ അവ്യക്തതയ്ക്കു സ്ഥാനം ഉണ്ടായിരുന്നില്ല. എന്നുമാ ത്രമല്ല; വളരെയധികം ആളുകൾ കാവ്യ പുൽപ്പത്തിയുമായി ഉദയം ചെയ്യുകയും ചെയ്തുകൊണ്ടിരുന്നു. എന്നാൽ

ചെറുകഥ, നോവൽ പ്രസ്ഥാനങ്ങളെ സംബന്ധിച്ചിട ത്തോളം അവ്യക്തതകളും ആശങ്കകളും ബാക്കിയായി. ഘടന യേയും, രൂപത്തെയും സംബന്ധിച്ച ആശങ്കകളായിരുന്നു കൂടു തലും. പാശ്ചാത്യ സാഹിത്യ സ്വാധീനം തന്നെയായിരുന്നു മല യാള ഗദ്യസാഹിത്യത്തെ പരിപോഷിപ്പിക്കുന്നതിൽ മുൻപന്തിയിൽ നിന്നിരുന്നത്.

ചെറുകഥയുടെ മർമ്മം കാലത്ത് ചെറുകഥകൾ എഴുതികൂട്ടിയതെന്നു തോന്നും. ചെറു കഥ, നോവൽ, കവിത ഇവ തമ്മിലുള്ള അതിർവരമ്പുകളെക്കുറിച്ചുപോലും അജ്ഞാതരാണെന്നു തോന്നുന്ന രീതിയിൽ തന്നെ ചിലർ കഥകളെഴുതികൂട്ടി. എന്നാൽ ചെറുകഥാ പ്രസ്ഥാനത്തിന്റെ അരുണോദയകാലത്ത് ഏതാനും മികച്ച ചെറുകഥകൾ മലയാളത്തിൽ ഉണ്ടായി.

പിന്നീട് ആ പ്രസ്ഥാനം ലോകസാഹിത്യ നിലവാരത്തിലേക്കു തന്നെ ഉയർന്നു എന്നത് പിൽക്കാല ചരിത്രം തെളിയിക്കുന്നു. ഏതു പ്രസ്ഥാനത്തിന്റേയും ‘ഉദയ സമയം ആ പ്രസ്ഥാനത്തെ സംബ ന്ധിച്ച് ബാലാരിഷ്ടതകളുടേതു കൂടിയായിരിക്കും. എന്തുതന്നെ ആയാലും മലയാള ചെറുകഥാ പ്രസ്ഥാനം ഇനി എത്രതന്നെ

പുരോഗമിച്ചാലും വളർന്നാലും ‘ആദ്യ ചെറുകഥ’ എന്ന സ്ഥാന ത്തിന് ഇളക്കം തട്ടാൻ പോകുന്നില്ല. ആദ്യകാല ചെറുകഥാ രചയിതാക്കളിൽ ‘വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാരുടെ സ്ഥാന ത്തെക്കുറിച്ച് നിരൂപകുതർക്കം നിലനിൽക്കുമെങ്കിലും ‘ആദ്യത്തെ ചെറുകഥയുടെ രചയിതാവ് എന്ന സ്ഥാനം അദ്ദേഹത്തിനുത ന്നെയാണ്. അതിൽ എല്ലാ സാഹിത്യ ചരിത്രാന്വേഷികൾക്കും തന്നെയാണ്.

വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാർ മലയാളത്തിലെ ആദ്യ ചെറു കഥാകൃത്താണ്. നാവികൃതി. വേങ്ങയിൽ കഥയാണ് ‘വാസ് നായനാരുടെ ചെറുകഥകളുടെ ഒരു പൊതുസ്വഭാവം അവ ആഖ്യാന പ്രധാനങ്ങളാണ് എന്നതാണ്.

ആഖ്യാനത്തിന് (വിവരണത്തിന്) അനിവാര്യമായ സംഭാഷണങ്ങൾ മാത്രമേ അദ്ദേഹം ഉപയോഗിച്ചിട്ടുള്ളൂ. ആഖ്യാന പ്രധാനമായ ചെറുകഥയിൽ സംഭാഷണത്തിനുള്ള സ്ഥാനം അത് എത്രമാത്രം ആഖ്യാനത്തിന് അനിവാര്യമായി വരുന്നുവെന്നതിനെ ആശ്രയിച്ചാണ് നിലകൊള്ളുന്നത്. ആഖ്യാനത്തേക്കാൾ

സംഭാഷണത്തിനു പ്രാധാന്യം ഉണ്ടായാൽ ചെറുകഥ നാടകത്തോടു മത്സരിക്കുന്ന അവസ്ഥാവിശേഷം ഉണ്ടാകും. സംഭാഷണ രൂപത്തിൽ ചെറുക ഥയിൽ തത്വജ്ഞാനം (പ്രഭാഷണം) ഉപയോഗിക്കുന്നത് ആ കാല ഘട്ടത്തിൽ സാധാരണമായിരുന്നെങ്കിലും വേങ്ങയിൽ അതിൽ നിന്നും മാറി സഞ്ചരിച്ചു.

വിവരണ പ്രാധാന്യം കൂടിയാൽ ചെറു ഉപന്യാസമോ, പ്രഭാഷണമോ ആണെന്നുള്ള തോന്നൽ വായ നക്കാരനിൽ സഷ്ടിക്കും. ചെറുകഥയുടെ പ്രഖ്യാപിതമായ ലക്ഷണങ്ങളെ സ്വീകരിച്ചും, അതിൽ ഒഴിവാക്കേണ്ടത് ഒഴിവാക്കിയും തന്നെയാണ് വേങ്ങയിൽ തന്റെ ആദ്യ കഥാസംരംഭത്തിന് തയ്യാ റെടുത്തത്.

മലയാള ചെറുകഥയിലെ ആദ്യത്തെ സംഭാഷണം: കോൺസ്റ്റബിൾ:- 

“ഈ മോതിരം എന്റെ കൈയ്യിൽ വന്നത് എങ്ങനെയാണെന്നു നിങ്ങൾക്ക് മനസ്സിലായോ?
(വാസനാവികൃതി) (വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാർ)
വർത്തമാന കഥാ നിരൂപണത്തിൽ കഥയെ വിലയിരുത്തുന്നതി നുള്ള മാനദണ്ഡങ്ങൾ നിരൂപകൻ മുന്നോട്ടുവെയ്ക്കുന്നു.

  • കഥയ്ക്കു പ്രസ്താവയോഗ്യമായ ഉള്ളടക്കം
  • ഒരു വീക്ഷണഗതി
  • രൂപഘടന നിയതമായ
  • കലയുടെ സത്യാത്മകത
  • കലാസൗന്ദര്യം
  • മാനവിക മൂല്യങ്ങളുടെ നിറവ് 
  • മനോവിജ്ഞാനീയ മൂല്യം.

ആദ്യകാല ചെറുകഥയെ വിഷയഭേദത്തിന് അടിസ്ഥാനത്തിൽ മൂന്നായി തിരിക്കുന്നു. 

  • വസ്ഥിതി
  • സ്വഭാവം
  • പ്രവൃത്തി

ഇവയിൽ മൂന്നിനും ഒകഥയിൽ സ്ഥാനമുണ്ടാകാമെങ്കിലും ഏതെങ്കിലും ഒന്നിനു മാത്രമേ പ്രാധാന്യം കല്പ്പിക്കാൻ പാടുള്ളൂ.

  • അമാനുഷകഥകൾ – എന്ന നാലാമതൊരു വകഭേദംകൂടി ആദ്യകാല നിരൂപകന്മാർ മുന്നോട്ടുവെയ്ക്കുന്നുണ്ട്.

കേസാരി നായനാർ?
വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാർ കേസരി നായനാർ എന്നു കൂടി അറിയപ്പെട്ടിരുന്നു.

അപസർപ്പക കഥ? മഹാകവി ഉള്ളൂരിന്റെ അഭിപ്രായത്തിൽ ‘വാസനാവികൃതി ഒരു അപസർപ്പക കഥയാണ്. ഒരുപക്ഷേ പ്രധാന കഥാപാത്രം ഒരു മോഷ്ടാവായിരുന്നതുകൊണ്ടാവാം. ഒരുകഥാപാത്രം മോഷ്ടാവാ യതുകൊണ്ടോ, ജയിൽശിക്ഷ അനുഭവിച്ചതുകൊണ്ടോ ഒരു കഥ അപസർപ്പക കഥയാവുന്നില്ല.

അപസർപ്പക കഥകൾക്കുവേണ്ട കുറ്റാന്വേഷണ വിവരണമോ, വ്യാഖ്യാനപരമായ നിർവ്വഹണമോ കഥാമർമ്മ വിശദീകരണമോ ഈ കഥയിലില്ല. അതുകൊണ്ടുതന്നെ ഉള്ളൂരിന്റെ പരാമർശം കൗതുകകരം എന്നതിനപ്പുറം പ്രാധാന്യം അർഹിക്കുന്നില്ല.

വിഷയ സ്വഭാവമനുസരിച്ച് ചെറുകഥകളെ 5 ആക്കി തിരിച്ചിരിക്കുന്നു.

  1. സംഭവം
  2. രംഗ
  3. ഭാവം
  4. ചരിത്രം
  5. ഹാസ്യം – ഇതിൽ ഭാവ ചെറുകഥകളുടെ വിഭാഗത്തിലാണ് ‘വാസനാവികൃതി പ്പെടുന്നത്.

‘വാസനാവികൃതി – എന്ന തലക്കെട്ടുതന്നെയാണ് ഈ കഥയിലെ നായകൻ. ഈ ഇതിവൃത്തത്തിന്റെ മുഴുവൻ അന്തസത്തയേയും ഉൾക്കൊണ്ട് നിറഞ്ഞു നിൽക്കുന്ന, ഈ തലക്കെട്ട് ഒഴിവാക്കാ നാകില്ല. കഥയുടെ അന്ത്യത്തിൽ നിർമ്മി കൊടുത്തിരിക്കുന്ന ‘ഹാസ്യപ്രധാനമായ് ശ്ലോകം അതിന്റെ സാരവും ഈ തലക്കെട്ടിന്റെ തിക്കു കാരണമായിതീർന്നിട്ടുണ്ട്. കഥാനായകന്റെ മുത്തശ്ശി സന്ധ്യാസമയത്ത് ചൊല്ലുന്ന ശ്ലോകമായി അവതരിപ്പിച്ചിരിക്കുന്നു.

ശ്ലോകം
“ശ്രുതിസ്മൃതിഭ്യാം വിഹിതാവതാദയ: 
പുനന്തിപാപം ന ലുനന്തി വാസനാം 
അനന്തസേവാതെ നികന്തതിദ്വയീ
മിതപ്രഭോ തൽപുരുഷാ ബഭാഷിനെ

സാരം : “ശ്രുതി, സ്മൃതി തുടങ്ങിയ പ്രായശ്ചിത്തങ്ങൾ കൊണ്ട് ചെയ്ത പാപം പോയപോകും. എന്നാൽ ‘വാസന’ പോവുകയില്ല. പാപവും, വാസനയും ഒരുമിച്ച് പോകണമെങ്കിൽ, ഈശ്വരാ അങ്ങനെതന്നെ സേവിക്കണമെന്നാണല്ലോ അങ്ങയുടെ ഭക്തന്മാർ പറയുന്നത്)

(ഈ ശ്ലോകം കഥയുടെ അവസാനത്തിൽ കഥാരംഭത്തിലേക്ക് ഒരു വാതിൽ കൂടി തുറന്നുവെച്ചുകൊണ്ടാണ് കൊടുത്തിരിക്കുന്നത്. സന്ധ്യാസമയം മുത്തശ്ശി പതിവായി ചൊല്ലാനുള്ള ഈ ശ്ലോകം, അവ രുടെ കുടുംബ പാരമ്പര്യമഹിമയെ കുറിച്ചും, കർമ്മമണ്ഡലങ്ങ ളെക്കുറിച്ചും ചിന്തിച്ച് ഊറി ചിരിക്കാനുള്ള ആസ്വാദകന്റെ അവസരത്ത വർദ്ധിപ്പിക്കുന്നുണ്ട്.

അതുകൊണ്ടാണ് ചെയ്ത പാപം നീങ്ങാനും, വാസനാബലം (വികൃതി) കൊണ്ട് മേലിൽ പാപവിചാരം ഉണ്ടാകാതിരിക്കാനും വേണ്ടി നായകൻ ഇക്കണ്ടക്കുറുപ്പ് ഗംഗാ സ്നാനവും വിശ്വനാഥ ദർശ നവും ചെയ്യാൻ തീരുമാനിച്ചത്. ആഖ്യാന പ്രധാനമാണ് ‘വാസ് നാവികൃതി എന്ന കഥ. കഥയുടെ വക്താവ് ‘ഇക്കണ്ടക്കുറുപ്പ്’ എന്നു പേരുള്ള കഥാപാത്രം തന്നെയാണ്.

ഈ കഥയുടെ രച നാപരമായ സവിശേഷത പരസ്പരബന്ധത്തോടെ കഥാകാരൻ സംഭവങ്ങളെ കോർത്തിണക്കിയിരിക്കുന്നു എന്നതാണ്. ഏക ദേശം ഒന്നേകാൽ നൂറ്റാണ്ടിനുശേഷവും, ഈ സൈബർ യുഗ ത്തിലും ഈ കഥ വായനയുടെ എല്ലാ ആസ്വാദന തൃപ്തിയും നമുക്ക് പകർന്നുതരുന്നുണ്ട്. അതുകൊണ്ടുതന്നെ കാലാതി

വർത്തിയായ ഒരു സർവ്വസ്വീകാര്യത ഈ കഥയ്ക്കുണ്ട്. അതു തന്നെയാണ് ഈ കഥ മുന്നോട്ടു വെയ്ക്കുന്ന ഏറ്റവും പ്രധാന പ്പെട്ട് വശവും. കഥാപാത്രത്തെ കൊണ്ടുതന്നെ കഥ പറയിക്കുന്ന രീതി. ഈ രീതി യുടെ ഏറ്റവും വലിയ സവിശേഷത അത് കഥ പറച്ചിലിന്റെ വിശ്വാ സ്യത വർദ്ധിപ്പിക്കും എന്നതാണ്.

ഇതൊരു മോഷ്ടാവിന്റെ കഥ യാകുമ്പോൾ വിശ്വാസ്യതയ്ക്ക് തീർച്ചയായും വലിയ സ്ഥാനമാണ് ഉള്ളത്. ഒപ്പം ആഖ്യാന പ്രധാനമായ കഥയ്ക്ക് ഈ രീതി പൂർണ്ണ മായ ഔചിത്യഭംഗിയും നൽകുന്നു. വാസനാവികൃതി എന്ന കഥ അവതരിപ്പിക്കുവാൻ കഥാകൃത്ത് ‘കത്തിന്റെ രൂപമാണ് മനസ്സിൽ ആദ്യം കണ്ടിരുന്നത്. കഥയുടെ ആദ്യാവസാനമായുള്ള രൂപം അനുവാചകനിൽ അങ്ങനെയൊരു തോന്നലാണ് സൃഷ്ടിക്കുക.

സംബോധന ചെയ്യേണ്ടത് ആർക്കാണെന്ന ആശയക്കുഴപ്പത്തിൽ നിന്നായിരിക്കണം കഥാകൃത്ത് തുടക്കത്തിൽ തന്നെ രൂപമാറ്റം വരുത്തിയിട്ടുണ്ടാവുക. പക്ഷേ ഒടുക്കം ഒരു ആശയക്കുഴപ്പവുമില്ലാതെ കത്തെഴുതി പൂർത്തി യാക്കി ഒപ്പും ഇട്ട് വെച്ചിരിക്കുന്നു. ഒപ്പം പേരും. കത്തെഴുതിയ വ്യക്തിയുടെ സ്വഭാവം കത്തിൽ

നിന്ന് വ്യക്തമാണ്. എന്തായാലും കത്തുകളുടെ രൂപം കഥയിൽ സ്വീകരിക്കുമ്പോൾ പല കുറവുകളും പ്രത്യേകിച്ച് പറയേണ്ടാത്ത പലതും കടന്നുവ രാം. അതുകൊണ്ടാവാം സംബോധന ഒഴിവാക്കിയത്. എന്തായാലും മലയാള സാഹിത്യത്തിലെ ആദ്യ ചെറുകഥ വളരെ കരുതലോടെ തന്നെ രൂപപ്പെട്ടതാണെന്നു വ്യക്തം.

ആദ്യകാല ചെറുകഥകളുടെ സ്വഭാവമായ അമിത വർണ്ണന, മല യാളത്തിലെ ആദ്യകഥയായ ‘വാസനാവികൃതിയെ അത്രയൊന്നും ബാധിച്ചതായി തോന്നുന്നില്ല. കഥാപാത പ്രധാനമായ കഥയാ യിട്ടും കഥാപാത്രത്തിന്റെ രൂപഭാവങ്ങളെക്കുറിച്ചോ, പാത്രപ്രധാനമായ കഥകൾക്കു പ്രിയംകരമായ കാണപ്പെടുന്ന സംഗതി കളെകുറിച്ചു പോലും വർണ്ണനയില്ല. എങ്കിലും മിഴിവുള്ളാരു കഥാപാത്രമായി ഇക്കണ്ടക്കുറുപ്പ് കഥയിൽ നിറയുന്നു.

ഈ പേരു പോലും കഥാപാത്രത്തിനു നൽകിയിട്ടുള്ളത് വളരെ കരു തലോടുകൂടിയാണെന്നു കാണാൻ കഴിയും – (സൂക്ഷ്മമായ പരിശോധനയിൽ) – അറിയപ്പെടുന്ന മോഷ്ടാവായിരുന്ന നാലാ മച്ഛന്റെ പേരാണത്. സ്വാഭാവികമായും, പിന്നെ ആ പേരിന്റെ നില യും, വിലയും കാത്തു സൂക്ഷിക്കേണ്ടേ?

നിലവാരത്തോടുകൂടി ആ പേര് നിലനിർത്തേണ്ടേ? അതുതന്നെയായിരുന്നു അയാളുടെ കർമ്മലക്ഷ്യവും. കഥയുടെ അവസാനഭാഗത്ത് സംഭവിക്കുന്ന അമളിയോടെ കഥ അടിമുടി മാറുന്നു. ഏതൊരു കർമ്മത്തിന്റേയും വിജയസാധ്യത കൾ അതാചരിക്കുന്ന വ്യക്തിയിൽ ഉണ്ടാക്കുന്ന ആത്മവിശ്വാസം ഒട്ടും ചെറുതായിരിക്കില്ല.

ഇവിടെ ‘ഇക്കണ്ടക്കുറുപ്പിനെ സംബ ന്ധിച്ചിടത്തോളം തോൽവി എന്നത് തനിക്ക് സംഭവിക്കാത്തതും, മറ്റുള്ളവർക്ക് മാത്രം വന്നുഭവിക്കുന്നതുമായ ഒരു ഏടാകൂടമാ ണെന്ന തെറ്റിദ്ധാരണ – പിന്നെ ബുദ്ധിമാനായി ഈ ലോകത്തിൽ താൻ മാത്രമേ ഉള്ളൂ എന്ന സ്ഥിരം ധാരണയും. രണ്ടും കൂടി ചേർന്നപ്പോഴാണ് ലോകത്തിലെ ഏറ്റവും വലിയ മണ്ടത്തരം സംഭ വിച്ചത്.

അബദ്ധങ്ങളുടെ രാജാവായി സ്വയം മാറിയ ഇക്കണ്ട് കുറുപ്പിന് ഇനി ഈ തൊഴിൽ ഭൂഷണമല്ലെന്നുറപ്പായി. തൊഴിലും, താവഴിയും മാറുക തന്നെ. പുണ്യക്ഷേത്രദർശനങ്ങളും, ഭക്തിമാർഗ്ഗവുംതന്നെ ശരണം. ഈ കഥാപാത്ര മനംമാറ്റത്തിൽ തികഞ്ഞ വിശ്വാസ്യത പുലർത്തു ന്നതിൽ കഥാകൃത്ത് വിജയിച്ചിരിക്കുന്നു.

കത്തെഴുതി ഒപ്പിട്ട് തീരു മാനം പ്രഖ്യാപിക്കുന്ന ഇക്കണ്ടക്കുറുപ്പ്, ഒരു പ്രതിജ്ഞ നിറവേറ്റുന്ന തരത്തിൽ വായനക്കാർക്കുമുന്നിൽ കൂടുതൽ വിശ്വസ്ത നാകുന്നു. തന്റെ വാസനാബലത്തിന്റെ (വാസനാവികൃതി) അവസ്ഥാവിശേ ഷം കൊണ്ട് താൻ അനുഭവിക്കേണ്ടിവന്ന ഈ മഹാഅപമാനം തനിക്ക് മാത്രമല്ലെന്നും, തന്റെ മുൻതലമുറകൾക്കുകൂടി (നാലാ മച്ഛന്റെപേര്) ഈശ്വര സേവ് അപമാനകരം എന്ന തികഞ്ഞ ബോധോദയത്തിൽ നിന്നാണ് ഇക്കണ്ടക്കുറുപ്പിന്റെ ആരംഭിക്കുന്ന ത്.

ആകെ നോക്കുമ്പോൾ പുതിയ വിളംബരങ്ങളുമായി എത്തിയ നവോത്ഥാനകലകളിൽ കൂടി കാണാത്ത കൈയ്യടക്കം കഥാ കൃത്ത്, മലയാളത്തിലെ ഈ ആദ്യ കഥയിൽ തന്നെ പ്രകടിപ്പിച്ചിരിക്കുന്നു. ഏതൊരു ഭാഷയ്ക്കും അഭിമാനിക്കാൻ കഴിയുന്ന ഒരു തുടക്കം.

ഏതൊരു പ്രസ്ഥാനത്തിനും തിലകക്കുറിയാകാൻ കഴിയുന്ന ഒരു ശുഭാരംഭം – അതാണ് ‘വാസനാവികൃതി. വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞി രാമൻ നായനാർ തന്റെ ആദ്യ കഥ കൈരളിയുടെ വാണിവിലാ സത്തിലേക്കുള്ള തൊടുകുറിയാക്കി മാറ്റി. ചെറുകഥാ പ്രസ്ഥാ നത്തെ സംബന്ധിച്ച്

തങ്ങളുടെ ആദ്യ രചനാസംരംഭം തന്നെ ആ പ്രസ്ഥാന ചരിത്രത്തിലെ തന്നെ നാഴികക്കല്ലായി മാറി. പിൽക്കാലത്ത് മലയാള ചെറുകഥാ പ്രസ്ഥാനത്തിന്, ഊടുംപാവും നെയ്യുന്നതിൽ നിസ്തുലമായ പങ്കാണ് ‘വാസനാവികൃതി നിർവ്വഹിച്ചിട്ടുള്ളതെന്ന് കാണാൻ കഴിയും.

ഒന്നേകാൽ നൂറ്റാണ്ട് മുൻപ് വെറും ആയിരത്തി ഒരുനൂറോളം വാക്കുകൾ കൊണ്ട് ‘വേങ്ങയിൽ കുഞ്ഞിരാമൻ നായനാർ കൊലയിൽ ‘വാസനാവികൃതി എന്ന കഥാശില്പ്പം ഇന്നും ചെറുകഥാ പ്രസ്ഥാനത്തിന് മാതൃകയായിക്കൊണ്ട്നി ലനിൽക്കുന്നു.

Conclusion:

In the end, Kunju learns a valuable lesson about the importance of time and the folly of trying to sell one’s soul. He realizes that time is a precious gift that cannot be replaced. He also learns that it is important to live life to the fullest and to appreciate the present moment.

महत्त्वाकांक्षा और लोभ Summary in Hindi

महत्त्वाकांक्षा और लोभ Summary in Hindi

“महत्त्वाकांक्षा और लोभ” दो ऐसी भावनाएँ हैं जो मनुष्य को प्रेरित कर सकती हैं, लेकिन वे विनाशकारी भी हो सकती हैं। महत्त्वाकांक्षा हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकती है, लेकिन यह हमें अनुचित तरीकों का भी उपयोग करने के लिए प्रेरित कर सकती है। लोभ हमें अधिक प्राप्त करने के लिए प्रेरित कर सकता है, लेकिन यह हमें लालची और स्वार्थी बना सकता है।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ Summary in Hindi

महत्त्वाकांक्षा और लोभ लेखक परिचय :

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी का जन्म 27 मई 1894 को खैरागढ़ (छत्तीसगढ़) में हुआ। शिक्षा के उपरांत आप साहित्य के क्षेत्र में आए। साहित्य क्षेत्र में आपकी निबंध, उपन्यास तथा समीक्षात्मक ग्रंथों में अलग पहचान दिखाई देती है। जीवन के कठीन सिद्धांत अर्थात तत्वों को दृष्टांत के सहारे स्पष्ट करने की आपकी शैली अद्वितीय है। आपका साहित्य समाज का दर्पण (mirror) ही नहीं बल्कि दीपक है।

जीवन की सच्चाइयों को बड़ी सरलता से व्यक्त करना तथा कहानी-सी मनोरंजकता के साथ प्रस्तुति आपके साहित्य की विशेष शैली बनी है। साहित्य और समाज सेवा में आपका जीवन बीता और 1971 में आपने इस संसार से बिदा ली।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ प्रमुख कृतियाँ :

‘कथा चक्र’ (उपन्यास), “हिंदी साहित्य विमर्श’ और ‘विश्व साहित्य’ (समीक्षात्मक ग्रंथ), बख्शी ग्रंथावली, ‘पंचपात्र’, ‘पद्यवन’, ‘कुछ’, और कुछ (निबंध संग्रह)

महत्त्वाकांक्षा और लोभ विधा का परिचय :

‘निबंध’ एक गद्य विधा है। किसी विषय का यथार्थ चित्रण जिसमें किया जाता है। निबंध इस गद्य विधा से जीवन के तत्वों को बड़ी सरलता के साथ समाज के सामने रखा जाता है। वर्तमान परिस्थितियों का काफी सूक्ष्म चित्रण निबंध जैसी विधा में किया जाता है।

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि निबंधकारों ने इस विधा को उच्च कोटी पर पहुँचा दिया है।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ विषय प्रवेश :

ज्ञात से अज्ञात की ओर इसी शिक्षा प्रणाली की तरह प्रस्तुत निबंध में जीवन के तत्वों को आरंभ में काल्पनिक कथा से जोड़ दिया है। मछुवा और मछुवी की काल्पनिक कहानी हमें सरलता से समझा देती है कि, जीवन की अति महत्त्वाकांक्षा, अति लालसा, सर्वशक्तिमान होने की अभिलाषा जीवन को परास्त (defeated) करती है।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ परिणामत:

मछुवा-मछुवी का सामान्य जीवन, मछली का वरदान, अभिलाषाओं का जागृत होना, मानवीय भावों को वश में न रखना, वरदान शाप में परिणत होना – मानवीय भावों के इस खेल में क्या सही, क्या गलत, दोष मछली का या मछुवी का – यही निबंध के चिंतन विषय हैं।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ पाठ परिचय :

‘अति से तो अमृत भी जहर बन जाता है’ जीवन के इसी तथ्य को उजागर करने वाले इस निबंध में अति महत्त्वाकांक्षा के साथ असंतोष, अति लालसा, लोभ, स्वयं को सर्वशक्तिमान बना लेने की उत्कट अभिलाषा जीवन को परास्त कर देती है।

जो मिला है, जितना मिला है, उसी में संतुष्ट रहने के बजाय अधिक पाने की अभिलाषा मनुष्य को लोभ के जाल में फँसाती है। मछली के वरदान से मछुवा-मछुवी को घर मिला, धन मिला, राजकीय वैभव मिलने से मछुवी रानी भी बनी।

पर हिरण्यकश्यप की तरह सर्वशक्तिमान होने की अभिलाषा से उन्होंने सूर्य, चंद्र, तथा मेघ को अपनी आज्ञा में रहने का वरदान माँगा। मछली अप्रसन्न होकर शाप देती है – ‘जा-जा, अपनी उसी झोपड़ी में रह।’ वरदान शाप में परिणत होते ही मछुवा-मछुवी झोंपड़ी में रहने लगे।

यहाँ एक तरफ अभिलाषा है। अभिलाषाओं को जगाने वाली मछली है। मानवीय भावों के इस खेल में दोष किसका? यही तो निबंध का सार है।

महत्त्वाकांक्षा और लोभ पाठ का सारांश :

अप्राप्य की लालसा हमेशा मानव मन को लोभ के जाल में फँसाती रहती है और जीवन को तहस-नहस कर डालती है। जीवन के इसी सिद्धांत को इस निबंध में दृष्टांत द्वारा समझाया है।

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एक कछुवा और कछुवी अपनी टूटी-फूटी झोंपड़ी में अपना जीवन व्यतीत कर रहे थे। मछुवा दिनभर मछलियाँ पकड़ता तो मछुवी दिन भर दूसरा काम करती थी तब कहीं खाने को मिलता था। यही उनका वर्तमान था, उन्हें न आशा थी, न कोई लालसा।

मछुवा एक दिन मछली पकड़ने नदी के किनारे गया। वहाँ नदी के किनारे एक छोटी सी मछली लताओं में फँसी थी। मछली ने मछुवे को देखकर पुकारा और मदद माँगी कि, मुझे पानी में छोड़ दो। मछुवे ने निस्वार्थ भाव से मछली को पानी में छोड़ा।

मछली ने पहले गड्ढे के पानी में, फिर नदी के पानी में छोड़ने की बात की। मछुवे ने वैसा ही किया। फिर मछली ने मछुवे को नदी के किनारे रोज आकर बैठने की बात की ताकि उसका मन बहल जाए। मछुवा वैसा ही करता रहा।

पत्नी के पूछने पर मछुवे ने पूरी घटना बता दी। पत्नी ने कहा तुम कुछ नहीं समझते, वह मछली कोई साधारण नहीं है। मछली के रूप में कोई देवी होगी। उससे कुछ माँग लो।

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पत्नी के कहने पर मछुवे ने मछली से अपने लिए घर माँगा। मछली के वरदान से मछुवे का घर बन गया। मछुवी में लोभ जागा। उसने सोचा घर होने से क्या होगा? धन चाहिए। फिर उसने धन माँगा तो धन मिला पर मछुवी की महत्त्वाकांक्षा बढ़ गई। उसने राजवैभव माँगा। फिर राजवैभव मिल गया।

उसका लोभ बढ़ा और उसने फिर रानी होने की अभिलाषा रखी। मछुवी राजमहल में रानी बन गई। अति लोभ से मछुवी ने अपने पति से कहलवाकर मछली से – सूर्य, चंद्र, मेघ पर अपने अधिकार में होने की माँग की। मछली ने रुष्ट होकर कहा – “जा – जा अपनी उसी झोपड़ी में रह।”

मछली के इसी शाप से सब समाप्त होकर मछुवा और मछुवी अपनी उसी – टूटी-फूटी झोंपड़ी मे आ गए। कथा समाप्त हो गई।

प्रस्तुत निबंध से लेखक बताना चाहते हैं कि मछुवा और मछुवी की कही कथा सच नहीं थी पर लोगों के मनोरथों की कथा सच है।

Conclusion

महत्त्वाकांक्षा और लोभ दोनों ही शक्तिशाली भावनाएँ हैं जो हमारे जीवन को प्रभावित कर सकती हैं। महत्त्वाकांक्षा हमें सफल होने के लिए प्रेरित कर सकती है, लेकिन यह हमें अनुचित तरीकों का भी उपयोग करने के लिए प्रेरित कर सकती है। लोभ हमें लालची और स्वार्थी बना सकता है।

PSEB Board Class 10 Hindi Summaries

PSEB Board Class 10 Hindi Summaries

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Punjab School Education Board 10th Class Summary In Hindi

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गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Summary in Hindi

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Summary in Hindi

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद is a collection of two ghazals written by the renowned Hindi poet Rahat Indori. The first ghazal is about friendship and the second ghazal is about being present in the moment.

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Summary in Hindi

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद कवि परिचय :

राहत इंदौरी जी का जन्म इंदौर में 1 जनवरी 1950 में कपड़ा मिल के कर्मचारी रफ्तुल्लाह कुरैशी और मकबुल उन निशा बेगम के यहाँ हुआ। उनकी प्राथमिक शिक्षा नूतन स्कूल इंदौर में हुई। उन्होंने इस्लामिया करीमिया कॉलेज इंदौर से 1973 में अपनी स्नातक की पढ़ाई पूरी की और 1975 में बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय भोपाल से उर्दू साहित्य में एम.ए. किया।

तत्पश्चात 1985 में मध्य प्रदेश के भौज मुक्त विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। आप एक भारतीय उर्दू शायर और हिंदी फिल्मों के गीतकार हैं। आप देवी अहिल्या विश्वविद्यालय इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रह चुके हैं।

आप उन चंद शायरों में से एक हैं जिनकी गजलों ने मुशायरों (poet conference) को साहित्यिक स्तर और सम्मान प्रदान किया है। आपकी गजलों में आधुनिक प्रतीक और बिंब (image) विद्यमान हैं, जो जीवन की वास्तविकता दर्शाते हैं।

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद प्रमुख कृतियाँ :

धूप-धूप, नाराज, चाँद पागल है, रुत, मौजूद, धूप बहुत है, दो कदम और सही (गजल संग्रह) आदि। काव्य परिचय : पहली गजल में दोस्ती का अर्थ और उसके महत्त्व को गजलकार ने स्पष्ट किया है। दूसरी गजल में गजलकार ने वर्तमान स्थिति का चित्रण किया है।

प्रस्तुत गजलें नया हौसला निर्माण करने वाली, उत्साह दिलाने वाली, सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता को जगाने वाली है, जिसमें जिंदगी के अलग-अलग रंगों का खूबसूरत इजहार (express) है।

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद सारांश :

(अ) दोस्ती : दोस्ती का मतलब समझाते हुए कवि कहते हैं कि अगर सच्चे दिल से तुम मुझे दोस्त समझते हो तो मेरे विचारों को भी मान लीजिए। विश्वास रखना मैं हरदम तुम्हारी भलाई के बारे में ही सोचूंगा। मेरे सभी विचार तुम्हारे विचारों के साथ मेल खाएँगे। मेरा कोई विचार तुम्हें पसंद नहीं आया तो तुम शिकायत (नाराजगी व्यक्त) कर सकते हो, शायद मेरे विचार तुम्हें बुरे भी लग सकते हैं, लेकिन मेरे कुछ विचार तुम्हें मानने भी पड़ेंगे।

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Summary in Hindi 1

कवि कहते हैं कि मनुष्य के हृदय (दिल) को हमें सबसे बड़ा शत्रु मान लेना चाहिए। हमें पत्थर को भी खुदा (ईश्वर) मानना चाहिए।

कवि यह कहना चाहते हैं कि दुनिया ने मुझपर यह ठप्पा लगा दिया है कि मैं हमेशा झूठ ही बोलता हूँ। यह मुझे स्वीकार है कि ज्यादातर मैं झूठ बोलता हूँ लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं हमेशा झूठ ही बोलता हूँ। कभी-कभार मैं सच भी बोलता हूँ। इसलिए मेरी आप से बिनती है कि कभी-कभी तो मेरी बातों पर विश्वास रखना, अन्यथा पता नहीं उसमें तुम्हारा ही नुकसान होगा।

कवि कहते हैं कि युगों के अनुसार देवताओं के भिन्न अवतार माने जाते हैं लेकिन साधुओं, फकिरों की भी लंबी परंपरा हमारे समाज में पाई जाती है। वही वैराग्य धारण कर समाज की सेवा करने का व्रत लेते हैं। कई सालों से हम फकिरों के इस व्रत का अनुसरण करते चले आ रहे हैं।

कवि कहते हैं कि कागजों के बीच खामोशियाँ होती हैं, उन्हें हमें पढ़ना आना चाहिए। तब एक-एक शब्द भी अपना कहा कुछ कहता है। उन शब्दों के स्वर हमें सुनाई देने चाहिए। हमे संवेदनशील होना चाहिए।

कवि कहते हैं कि किसी को परखने में, किसी की परीक्षा लेने में कोई बुराई नहीं है। हमें अपने कर्तव्यों को, उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना चाहिए और मुझे भी तुम परखो और मुझे भला मानकर मेरी कुछ बातें भी माननी पड़ेंगी। आपको मेरी बातें आज शायद कटु, बुरी लगे, लेकिन उसमें आपकी भलाई ही छिपी होगी।

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद Summary in Hindi 2

कवि कहते हैं कि आए हुए संकट को पार लगाना ही जिंदगी है। जो संकट, दुःख जीवन में मिले हैं उससे बाहर निकलने का. रास्ता तो हमें अवश्य ढूँढ़ना होगा। लेकिन उसके साथ-साथ दुःख ने हमें पनाह दी इसलिए उसके आभार भी प्रकट करने चाहिए क्योंकि दुःख के छत ने ही हमें सुख का अहसास करा दिया। जिंदगी में अगर हमेशा ही सुख मिलता रहे तो जीवन रुचिहीन होगा। दुःख ही वह बात है जो हमें सूख का मूल्य (महत्व) समझा देती है।

(आ) मौजूद : कवि कहते हैं कि इस शहर में अक्सर तूफान आते रहते हैं। आने वाला तूफान शहर को नेस्तनाबूद (destroyed) करने पर तुला रहता है। तूफान के कारण शहर का नक्शा बदल जाता है। हर तरफ नुकसान का मंजर छाया रहता है, कई जाने चली जाती है। इस हालत की आदत-सी हो गई है।

जब-तक जिंदा है तब तक चिंतामुक्त, तनावरहित जीवन जिएँगे। देखते हैं कल के तूफान में किसका नंबर आता है, किसके दिन भर गए हैं। तब तक तो खुशी-खुशी से जिएँगे। – कवि कहते हैं कि आज सच्चे मित्रों का मिलना बड़ा कठिन हुआ है। जिसे हम दोस्त मानते हैं, वही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन हो सकता है। हमे हमेशा सतर्क और चौकन्ना रहना पड़ेगा। भले ही उनके दाँत जहरीले होंगे लेकिन हमें भी उस जहर का इलाज करना आना चाहिए।

कवि कहते हैं कि सूखे हुए बादल (हमारी भ्रष्ट व्यवस्था) हमारे भाग्य (होठों) पर कुछ प्रभाव जरूर छोड़ जाते हैं। इस के कारण गुस्सा आँखों में सैलाब (बाढ़) सा नजर आता है, वह सारी व्यवस्था को नष्ट कर नया भविष्य दे सकता है।

कवि कहते हैं कि कोई व्यक्ति जब अपने विचार बयान करता है, तब उसकी योग्यता, कौशल का पता चलता है। उस व्यक्ति के हृदय में क्या चल रहा है वह सब होठों पर आ जाता है। शब्दों के बिना हमारा चातुर्य बेकार है।

कवि कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा सावधान, सतर्क रहना चाहिए। इस बस्ती में एक कातिल (killer) कागज (झूठा, दोगला) का पोशाक पहनकर (स्वार्थ) हत्याएँ करने आता है। मनुष्य जैसा दिखता है, वैसा नहीं होता। वह किसी को भी धोखा देकर अपना स्वार्थ पूरा करता है।

कवि कहते हैं कुछ व्यक्ति हमेशा अपने कर्मों की दुर्गंध (बुराई) अपने मस्तिष्क में भरते रहते हैं। दूसरों के लिए वे गड्ढा खोदते हैं लेकिन खुद उस गड्ढे में जाकर गिरते हैं। जब हम अपने कपड़ों पर इत्र लगाते हैं, तो उसकी सुगंध दूसरों को आने से पहले स्वयं को आती है। दूसरों का बुरा सोचने पर खुदका बुरा होता है।

कवि कहते हैं कि दया, कृपा, इंसानियत के दो बड़े पहलू हैं। लेकिन यह तभी मुमकिन है जब हम ईश्वरी सत्ता देख पाते हैं। दूरसों के प्रति दया, परसुख हम तभी देख पाएँगे जब हमारी आँखों में ईश्वरी दृष्टि होगी।

कवि कहते हैं अनुभवि व्यक्ति या दूसरों की मदद करने वाला व्यक्ति थकने पर, उसकी शक्ति क्षीण हो जाने पर वह कुछ नहीं कर सकता किंतु उसके अनुभवों (दयालु वृत्ति) से जो ज्ञान प्राप्त होता है उसे प्राप्त करने के लिए उसके पास हमेशा भीड़ लगी रहती है।

कवि कहते हैं कि जो आँखें ख्वाब (सपने) देखती हैं, वह सपने अगर प्रत्यक्ष में उतरते हैं तो उन आँखों की नींद गायब हो जाती है। अर्थात वह बहुत सुखी और सफल बन जाता है। अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए हमें कड़ी मेहनत करनी चाहिए।

Conclusion

गजलें (अ) दोस्ती (आ) मौजूद is a beautiful collection of ghazals that remind us of the important things in life. Indori’s words are both moving and insightful, and they offer us a unique perspective on friendship and being present in the moment.

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